Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka
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में। नहीं मिलसी बीजी ढोर रे लाला ॥ विन ॥ ८ ॥ सुगणी मुण हर्षित हुई । सहु का हुवा एक मनरे लाला ॥ विन० ॥ ९ ॥ शिघ्र बुलाइ मुनीम को । कहे जावो सोहन शाह घररे लाला || योग्यबात सहू करी तिहां । लघु पुत्र जिनदास संगरे लाला ॥ विन० ॥ १० ॥ सगपण करो सुगुणी तणो । शिघ्र करो ए काजरे लाला ॥ मुनीमजी सुण खुश हुवा । तन सिणगार सज्याज रे लाला ॥ विन ॥ ११ ॥ घणा जणा संग परि बर्या । आया सोहन शाह घररे लाला || मोटा नर आता देखके | शाहा उठ्या हर्ष भररे लाला ॥ विन० ॥ १२ ॥ सत्कार सन्मान देइने । उच्चासने वेठायरे लाला ॥ नम्रतासे आवा तणो | पूछे कारण उमायरे लाला ॥ विन० ॥ १३ ॥ मुनीम कहे शाहा जी सूणो । नगर सेठ श्रीपत सोहायरे लाला । तस पुत्री सुलक्षणी । सुगुणी गुण सवायरे लाला ॥ विन० ॥ १४ ॥ आप पुत्र जिनदासजी । तस संग करणो विवाहारे लाला || आप कहो तिम करस्यां सही । रीत भांत औछाहरे लाला ॥ विन० ॥ १५ ॥ सुण सोहन शाह हर्षीयो । चिंते ५ धन्य २ पुण्यवंतरे लाला ॥ समंद होवे मोटे घरे । होंसी | जगत् में महंतरे लाला ॥विन ० ॥ १६ ॥ नरमी कहे मुनीम से । शाहाजी में तो गरीबरे लाला॥ श्रीपत शाहा मोटा घणा । किम रहसे रीत रसीबरे लाला ॥ विन० ॥ १७॥ मुनीम कहे सुणो शाहाजी ।
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