Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 19
________________ जिनदास ॥ तात तणे चरणे नम्या । बुचकारी हो शाह वेठाया पास ॥ धर्म ॥ १९ ॥ 2 मीठे बचने पूछीयो। किहांथी हो आया कहोसाच॥आज काल भणोछो किस्यो। किण मारग | में रह्या छो राच॥धर्म ॥२०॥जिनदास कहे कर जोड के। तातजी हो आप पुण्य पसाय ॥ | सद्गुरु मिलीया मुज भणी । इण पुरमेंहो रह्या स्थिर यासआय ॥धर्म ॥ २१ ॥ अनु-12 N ग्रह करी मुज ऊपरे । दरसायोहो इण जगको स्वरुप ॥ आत्म पुद्गल ओलख्या । मोह-|| मायाहो छे यह अन्धकूप ॥ धर्म ॥ २२ ॥ धर्म मार्ग जाण्या थकां । इण भवमी उज्वालेकूल ॥ अनीतीपंथ जावे नहीं । संपराखेहो विनयधर्मको मूल ॥धर्म॥ २३ ॥ देवसीद्ध ग-IN ती आगेदेबे । इम जाणीहो धर्म आदरो तात ॥ और कला सहकारमी । तेपणहा साख्या । तुम जात ॥ धर्म ॥ २४ ॥ धर्म नीती विनय थकी।सोहन शाह हो वणा हुया सूशाल ॥2 INऋषी अमोलख' धर्म प्रिय । पूरी हुइ हो एपंचमी ढाल ॥ धर्म ॥२५॥॥ दुहा ॥ शाह हर्षी कहे सुतने । अहो पुण्यवंत सूजाण ॥ सुखे जावो मुनीवरकने। सीखोसूणो बाखाण. ॥ १॥तो इत्तावर्ष में । स्थानक न जोयोनेण ॥ हिवेलाज मुजआवेइ । मस्करी करसीसेण- 4 ॥ २ ॥तूंनित्य सुणे बखाणजे । मुजने कहीजे आय ॥ थारा कह्या प्रमाण में । धर्म करस्यूं | | घरमाय ॥ ३ ॥ इमसुणा जिनदास जी । पाम्याहर्ष अपार ॥ सहपरिवार धर्मी हुवे । तो

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