Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ .स खण्ड १ आया हो तस सन्मुख चाल ॥ सत्कारी लेगया दुकानपे । सुखासन हो बेठा ते काल || ॥ धर्म ॥१०॥ इतरे कोइ कार्य भणी। आया हो तिहां आवड कुँवार ॥ सेठ कहे। पाछे आवजो । पुरसत नहीं हो हमने इणवार ॥ धर्म ॥११॥ भाइ साहेब यह आवीया। धर्म चरचा हो करसां इण साथ ॥ सस्कार देख जिनदास को। इर्षाइ हो बृध वन्धूघीसे हाथ ॥ धर्म ॥१२॥ इणने तो प्रछे सह । इणथी हो हुवो मुज अपमान ॥ मुह बी न्धाने चाले लग्यो । बावो होइ हो मांगसी कधी धान ॥धर्म ॥१३॥ इम बड बड तो मनमें। ते आयो होसोहन शाहा पास॥ कहे वरजो जिनदास ने। तेपडियों हो साधूनी फा स ॥ धर्म ॥ १४॥ भणनोतो छोडी दीयो । सहु लोक ज हो लागा तस लार ॥ साधू होती थोडा दिन में । लजासी हो तुम कुल परिवार ॥ धर्म ॥१५॥ सोहन शाह कहे चुपरहे । तेहतो के हो मोटो पुण्यवंत । खोटो काम करे नहीं । हूं जाणू हो साहू । गर्भथी तंत ॥ धर्म ॥१६॥ तिणरा पुण्य पसायथी । एह संपत हो विलसो छो पूत ॥ तिण पहिला दिशा आपणी । तुम जाणो हो किस्यो थो घरपूत ॥ धर्म ॥ १७॥ इम | | वयण सुण तात का। खिश्शाणो हो हुवो मन मांय ॥ कहे इम सीस चडाय के। बिगाड। स्योहो थोडा दिने ताय ॥ धर्म ॥१८॥ जावडतो गयो घरविषे। तिण बेला हो आया ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122