Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka
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जि०सु०
१ देव गुरु
धर्म
स्वर्ग सुखदेवैजी । आगे पण करे सहाय ॥ भ० ॥ १९ ॥ सुखेच्छू इम जाणनेजी । प्रथम | सीखो ज्ञान ॥ श्रावक साधू धर्मको जी । विवरा सहीत विज्ञान ॥ भ० ॥ २० ॥ श्रधो सत्यजिनवाणीजी । संकादी दोष त्याग ॥ श्रधा सार सम्यक्यत्व छे । उतारे मोहको छाग ॥ भ० ॥ २१ ॥ फिर शक्ती सम आचारोजी । वृतनियम हितलाय ॥ निरतीचारे पाल तां । आद्वार संधाय ॥ भ० ॥ २२ ॥ ज्यूंना कर्मक्षपाववाजी । यथाशक्त करो तप । मित्रता राखो सर्वथजी । आभ्यंतर यह जप ॥ भ० ॥ २३ ॥ येही सार संसारमेंजी । | लेवो लावो हितलाय ॥ भ० ॥ कहनेका गरजी हमेंजी । करणकी निजइच्छाय ॥ भ० ॥ २४ ॥ यहहितशिक्ष ऋषिवरुजी | दी दोनोंको समजाय ॥ अमोल, सत्संग विश्वमेजी । पूर्णपुण्ये मिलाय ॥ भ० ॥ २५ ॥ ७ ॥ दुहा ॥ सुण उपदेश महाराज को । तनमन हुवोहुलास ॥ अपूर्व वस्तु कर चडी । हर्षी कहे जिनदास ॥ १ ॥ सत्य वाणी प्रभु आपकी । सुमित्रके प्रसाद ॥ निर्लोभी उपकारीया । सद्गुरु मिल्या तुम साय ॥ २ ॥ जेजेबचन प्रा कासया । तिणमां म्हारोहित ॥ और सज्जन सहु स्वारर्थी । आपछो साचा मित ॥ ३॥ अब तो महाराजः णमें । मुज शक्ती अनुसार ॥ कसरकछू राखूं नहीं । देवो समकित सार ॥ ४ ॥ तीनं तत्व मुनी रायजी । तास दीया धराय ॥ नमुकार आवश्यकदी ।
खण्ड १

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