Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ सीखे नित्य उमाय ॥५॥७॥ ढाल ५ पांचमी ॥ मोटी या जगथिमाहें मोहणी ॥ यह ॥ | धर्म सदा जय कारणो। धर्मी नर हो पामे सत्कार ॥ पापी द्वेष करेतेहथी । ते धर्मी ने । | होवे सुखकार ॥ धर्म ॥१॥ मिश्श करी नीशाल को। नित्य सीखेहो मुनीवर कने ज्ञान॥ वाचन पूछन पुनरा वृतन । उपयोगसे हो करे पुण्यवान ॥धर्म ॥२॥ तत्वं क्रिया द्रव्य नेयांगमा अनुवादज हो निःपा प्रमाण ॥ इत्यादी थोडा कालमें। घणो सीख्या हो फेल्यो विज्ञान ॥ धर्म ॥३॥ज्यों ज्यों भीजे कामली । त्यों त्यों हो बजन भारी होय ॥ वारीमें , | विन्दूतेल को । तिम पसर्या हो बुद्धी गुण दोय ॥ धर्म ॥४॥ एकदा मुनी वखाणमें ।।। वांचे हो षट द्रव्य अधिकार॥ प्रश्न उठाइ बीचमें । पूछेहो जिनदास ते वार ॥धर्म ॥५॥ तेहथी सुक्ष्म भावते । बादरपणे हो प्रगमें सभा तांय ॥ सभा सह आश्चर्य हुइ । सब जोवे हो बालक किणराय ॥ धर्म ॥६॥ धन्य इनका मा वापने । जिन कूरखे हो उपनाए NT रतन ॥ इण वय एहावा गीतार्थी । यह आगे हो घणा करसी जतन ॥ धर्म॥७॥ धर्म | देशना पूर्ण हयां । सह श्रावक हो गया आगार ॥ पीछे से जिनदासजी । घर चाल्या हो | घर सामायिद पार ॥धर्म॥ ८॥ बहु श्रावक मारग विषे। उभा होइ हो देवे सत्कार॥ श्रीपत-N शाह ने बने विपे। कोइ बोलको हो संदेहतेवार ॥ धर्म ॥९॥ जाता देख जिनदासने |

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122