Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 28
________________ १२ ।। रुर नही ज्याद केवा तणा । में टाबर मुख आगलना । ए आचर निज कुल सोभणा जी० सु० खण्ड १ 12॥ सुणो ॥ २० ॥ मुगुणी सीख दी वीशालो। अधर्म पंथ दो पुण टालो। श्रावकाचार व सु ढालो । अमोलख ऋषिकहे उजमा लो ॥ सुणो ॥ २१ ॥ ॥ दुहा ॥ इम सुण सु गुणी वयण को। सास घणीहर्षाय ॥ वलीहरी बहअर तणी। मुमती दीवी बताय ॥ १॥ कोडीको खर चो नहीं। नहीं टःख तन को होय ॥ gण भवे सख संपत मिले । पर भव सुख ते जोय ॥२॥ बहू पण राजी रहे । रुपक लोके देखाय ॥ यह काम में सु ख थी करूं । इम चिन्ती कहे वाय ॥ ३ ॥ वाइ कहेणी थायरी । सहू म्हारे प्रमाण ॥ १ अबी |सठ जी की सला लड । करूं वंदोवस्त होण॥४॥ सखे रहो चाहा सोलहो । तुजथी |म परसन्न ॥ इम विश्वासी सास गइ । आणद धरती मन ॥ ५॥ ॥ ढाल ९ नवामी । ॥ कायल परवत बूंदलो रे लाल ॥ यह ० ॥ सासू समजी जाणने रे लाल । सुगुणी घN Nणी हर्षायहो । प्राणेश्वर॥ घरका मनुष्य सुल्लभ छ रे लाला । समजसी थोडा मांयहोप्रा. Aणेश्वर ॥ १ ॥ सूसंगते गुण नीपजे रे लाला । सुसंगत सुख दायहो प्रा० ॥ सूसंगत सु| धरे नहीरे लाल ॥ भारीकर्मी कहवाय हो प्रा० ॥ सू० ॥ २॥ प्राणपती इण घर रही | रे लाल । किम पाम्या जैन धर्म हो प्रा० ॥ साची करणीके कपट कियो रे लाल । यह है ।

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