Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 13
________________ धरी । हासु०।नित्य ॥ सीख धर्म का ज्ञान । विनय भक्तीकरी ।होसु० विन० ॥धूयासूगुणी ध्रुवधर्म ।लाइगयाभवथकी । होसुकालाइ ॥तेलविन्दू नीरमाय।तिमफेलि नकी। होसु०ति. ॥१०॥थोडा कालने माया शास्त्र जाण्या घणा । होसु०। शास्त्रातत्वार्थ नय पक्ष । भावसुक्ष्म । तणा । हासु भाव॥ एकीदनहँसीमाय शरमी कहे तात्त स्युं । होसु। शर० ॥ सुसंगतसुख देय। दाइ भव ज्ञात सु । होसु . । दोइ० ॥११॥ अबला अवतार परवसः। आधार रहे कंत नो । होसु । आ० ॥ में नही इच्छ रुप धन । इच्छ धर्म वंत नो । होमु० इच्छ० ॥ सेठ कहे अहो बाल । बात साची कही । होसु० । बात०॥ तुज इच्छा | सम जोगः। मिलास्यू मे सही। होसु ० । मिला ॥ १२ ॥ कु जोडो जग माहे । मिला || | वे लोभे करी। हो । मिला ॥ कसाइ थी ते अधिका । पूरो पुत्री अरी । होसु०पूरो ॥ बाइ रहे निश्चिन्त । जोडी मिलावस्युं । होसु०। जोडी० ॥ मुसंगत सुखदाय । 'अमोल' कहे भावस्यूं । होसु० । अमोल ॥ १३॥ ॥ दुहा॥ सेठ सुत धर्मचन्दते ॥ अने कुँ वर जिनदास ॥ एकण अध्यापक कने । करे विद्या अभ्यास ॥१॥ वयबल बुद्वि सारखी । N| सीखे होडाहोड ॥ सूभोदय प्रीतीहुइ । दोइमिल्या अखाडे ॥ २ ॥ धर्मचंद रथ स्वारहो आवे जिनदास गेह ॥ वेठाइ निज पास लस । शाळ में जावे तेह ॥३॥ साधू स्थानक

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