Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 11
________________ ४॥ थोडा काल माहें भण्या। नर नारी का क्ला सार॥धर्मसंजोग जिणपर वणे।तेसु-N णियों अधीकार ॥५॥७॥ढाल ३तीसरी॥ इण सरवरीयारी पाल उभी दोइ नागरी ॥ यह० ॥ इणही नगरी मांय नगर सेठ दीपतो।हो सुजाण। नगर सेठ दीपतो॥श्रीपत नामे शाहा । धन सर्व जापतो। हो सुजाण । धनेसर्व जीपतो॥ समणा पाशक वृतधार। जाणं प्रवचनको । होसु०।जाण०॥ हेय ज्ञय उपादेय। सद्वाद रचनको। होसु०। साद्वा०॥१॥ सामायिक प्रतिक्रमणधापोषदी वृतधरे। होसु० । पोष०॥प्रतिलाभ अणगार। धर्म उन्नती करे। होसूधर्म०॥ | साधर्मीको देदान उपकरण ज्ञानना । हासुः । उप० ॥ संतोपि चित उदार । न्यायी | | अभीमान ना । होसु० । न्याइ० ॥२॥ शिवा नामे तंसनार । प्यार धर्म पेघणो । हासु०-2 प्यार० ॥ धर्म चन्द तस पुत्र । नाम सम गुणा भणो । होसु० । नाम० ॥ पुसी एक रुप । दिव्य । सुगणी गुण आगली । हासु० । गुण० ॥ धर्मशास्त्रकोजाण । दया सील में रली ।। होसु० । दया० ॥३॥ अगवाणी जो भलो होय । तो घर भलो थावई। होस० । घर० ॥ पुण्यवंतने पुण्यवत । जोग मिल आदइ । होसु० । जोग० ॥ साधू संग म दान । करे । उत्सुक धरी । होसु० । को० ॥ पाले पलावे धर्म । लावो ले हिरी सिरी । हो-12 लज्जा NR० । ल वो० ॥ ४ ॥ तिण अवसर पुण्य जोग | धर्म जय ऋषिवरा । होसु० । धर्म० ॥ २ लक्ष्मी

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