Book Title: Jindas Suguni Charitra Author(s): Amolakrushi Maharaj Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka View full book textPage 8
________________ जि०सु० २ छाछ ॥ था खावड नाम दे । तीनी हुवा हुसीयार ॥ भ ॥ २० ॥ पुण्य पापको जोडो सदाइ | दुःख सुव कर्मै पाय । ढाल पहली कही 'ऋषि अमोलख' । धर्म सदा सुखदाय ॥ ॥ २९०॥ ॥ दुइ ॥ कुटुम्ब तो वयो तदा । धन तणी हुइ हाण || सोहन शाहा दुःखीया हुया |पले न पांचो प्राण ॥१॥ जब थी संपदा घर विषे । तब देता सहू मान ॥ स्वार्थका जन सहू | अब नहीं देवे धान ||२|| देणहार बदली गया । लेणदार लग्या लार । रह्यो माल लिलान कर । तस कीधा निरधार || ३ || ग्रामके बाहिर झोंपडी । करी फुसकी तैयार ॥ पांचही आइ तिहा रहे । करे तुच्छ वैपार ॥४॥ इण परे काल अतिक्रमें । वर्ष वीत्या हे दोय || हवे पुण्य किस प्रगटे | सुण जो श्रोता सोय ॥५॥७॥ ढाल २ री ॥ थारो गयो रे | जोवन पाछो नहीं आवे || यह देशी || तिण अवसर धर्मोदय ऋषि || बहू मूनी संग तप संयमें खुबी । जन पदे फिरी धर्म दीपावे || धर्म करणी कियाथी जीव सुख पावे ॥ आंकडी || १ | उन्हाले चन्टू परचन्ड तपे || मुनी जग तारण बिहारे खपे ॥ सीस पग उभराणे | जीव घबरावे ॥ धर्म|| २ || तृषा व्यापी तिहां ऊभा आइ ॥ करे जल जाचन सोहन शाहा तांइ ॥ तब तक शाहजी वेहरावे ॥धर्म ॥ ३ ॥ मुनी छाछ लेइने छांया माइ ॥ विसामो लेइ लीवी चुकाई । सोहन शाह मुनी कने आवे || धर्म ॥ ४ ॥ कर जोडी कहे शाहा नर खण्ड १Page Navigation
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