Book Title: Jindas Suguni Charitra Author(s): Amolakrushi Maharaj Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka View full book textPage 7
________________ ||९|| जीव जक्तका धन पुत्र जोगे । जाणे पामां सुख ॥ पण पुण्य विन पूरा सुख मिले न हीं | उलटो हो दुःख ॥ ॥ १०॥ पापी प्राणी आयो उदरमें । तिथी ऋद्ध विरलाय ॥ कोटी द्रव्यका वाहण डूज्या । सेठ खबर ते पाय ॥ भ ॥ ११ ॥ सुतका हर्षथी दुःख न aur | सोचे ने घणो माल । वैपार कर और धन कमास्यूं । पोषं पुत्रने हाल | ॥१२॥ जिम गर्भ ते मोटो होवे । तिमर हाणी थाय । सेठ तो गिणे नही तेहने | नव मा से कुंवर जनमाय ॥ ४ ॥ १३ ॥ जन्म मौछव कर न्यान जिमाइ । सज्जन सन्मुख जाम ! बहू आप से कुंवर थयो । आवड कुंवर नाम ॥ ॥ १४ ॥ सुखे २ ते सोटो होने । वी कित्तो काल || गर्भवती हुइ फिर सेठाणी । सेठ भया खुशाल || || १५ ॥ दीवा लोनको दूकान को | गुमास्ता खायो धन्न । लेणदार लीवी जागा खोली । तोही से ठ ॥ ॥ १६ ॥ पूत्र मोटा होइ द्रव्य कमाली । आपण होशा वृव । चाकरी कर सी दोनो आपणी । बहू होते समृध ॥ भ ॥ १७ ॥ गडीयो धन घणो छे आपणे । इम चिं त्ती खोयो तेइ । कोयला माटी पाणी दीसे । तो पण पुत्र से नेह ॥ भ ॥ १८ ॥ धन गयो जागी जावड नाम दे । तीजो गर्भवली रहाय । लाय लागी घर वस्त्र जली या । तब से ठजी विलखाय ॥ ॥ १९ ॥ नत्र सांसे ते जनम्यो बालक | बुलायो परिवार । धन खायाPage Navigation
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