Book Title: Jindas Suguni Charitra Author(s): Amolakrushi Maharaj Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka View full book textPage 6
________________ m | धर ध्यान | तज विखवाद प्रमाद को । तो प्रयास प्रमाण ॥ ९॥७॥ ढाल १ ली॥नव | घांटी मांहें भटकत आयो । यह देशी ॥ मध्य लोके मध्य द्विप जंबु मध्य । क्षेत्र भरत सुखकार । देश बत्तीस हजारमें सोभे । मगध मालव सिरदार । सुणीयो चरित्र रसाल। के भविक जन । सुणियो० ॥ आंकडी ॥१॥ महेन्द्रपुर तिण माहे शिरोमण। ऋद्धि सिद्धी भरपूर । गढ दरवाजा राज पंथ शोहे । दो चक्री भय दूर । ॥भ॥ २॥ पुष्प पत्र फल बृक्षे भर्यो वन । सरोवर विविध प्रकार ॥ सर्व शोभाथी शोहे स्वर्ग ज्यों । सहु जनने सु | खकार ॥ भ ॥ ३ ॥ राजे राजा अराजय नामें ॥ धर्म कर्म में निपुण । रूप तेज दिव्य | | न्यादी नरेश्वर ॥ परजा तात बहु गुण ॥ भ ॥ ४॥ रूपे रूप श्री पट्टराणी।सील विनय | गुणधाम । दान दया लज्जा करी सोहे । पती बल्लभ अभीराम ॥॥ ५॥ नगर माहें ब. | हू जन पुण्य वंता ॥ दानी गुणी दयाल ॥ चार वरण छत्तीस कोमथी ॥ सोहे घर बजार ॥भ॥ ६॥ तिहां सेठ एक सोहन शाहा वर ॥ वितवंत गुण विख्यात ॥ दाता भुक्ता अजाग | धर्मको ॥ धंदे पचे दिनरात ॥भ ||७॥ तस घरणी सौभाग्यवतीवर ॥ सीलरूप सोभाय ॥ पुग्य थी नित्य नवला सुख भोगे ॥ पुत्र विना विलखाय ॥भ॥ ८॥ संसारी सुख भोगत | एकदा । रह्यो मर्भे जीव आय ॥ इम जाणी ने दम्पती हर्ष्या । औछब अगरणी कराय"भPage Navigation
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