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( ३६ ) १७५ वे श्रादि श्लोकों से स्त्री-पुनर्विवाह का समर्थन होता है या नहीं?
उत्तर--होता है । त्रैवर्णिकाचार के रचयिता सोमसेन ने हिन्दू-स्मृतियो की नकल की है, यहाँ तक कि वहाँ के श्लोक चुरा चुरा कर ग्रन्थ का कलेवर बढ़ाया है। हिन्दू स्मृतियों में विधवा-विवाह का विधान पाया जाता है इसलिये उनमें भी इसका विधान किया है । दूसरी बात यह है कि दक्षिण प्रान्त में ( जहाँ कि सोमसेन भट्टारक हुए है) विधवा-विवाह का रिवाज सदा से रहा है। यह बात हम तेईसवें प्रश्न के उत्तर में कह चुके हैं। इसलिये भी सोमसन जी ने विधवा-विवाह का समर्थन किया है । सब से स्पट बात तो यह है कि उनने गालव ऋषि का मत विधवा-विवाह के पक्ष में उद्धृत किया है लेकिन उसका खण्डन बिलकुल नहीं किया । पाठक ज़रा निम्न लिखित श्लोक पर ध्यान दें :
कलौतु पुनरुद्वाहं वर्जयेदिति गालवः ।
कस्मिश्चिद्देशे इच्छन्ति न तु सर्वत्र कंचन ॥ __"गालव ऋषि कहते हैं कि कलिकाल में पुनर्विवाह न कर । परन्तु कुछ लोग चाहते हैं कि किसी किसी देश में करना चाहिये।"
इससे साफ़ मालूम होता है कि दक्षिण प्रान्त में उस समय भी पुनर्विवाह का रिवाज चालू था जिसका विरोध भट्टारकजी भी नहीं कर सके। इसलिये उनने विधवा-विवाह के विरोध में एक पंक्ति भी न लिखी । जो आदमी ज़रा ज़रा सी बात में सात पुश्त को नरक में भेजता है वह विधवा विवाह को ज़रा भी निंदा न करे यह बड़े आश्चर्य की बात है