________________
( २७ )
आक्षेप-( ख ) दीक्षान्वय क्रिया में जो पुरुष दीक्षा ले रहा है, उसका विवाह उमी की स्त्री के साथ होता है। इससे विधवाविवाह कैसे सिद्ध होगया?
समाधान-जो लोग कन्या शब्द का अर्थ कुमारी करते है और कुमारी के सिवाय किसी दूसरी स्त्री का विवाह ही नहीं मानते, उनकी महतोड उत्तर देने के लिये हमने दीक्षा. न्वय क्रिया का वह श्लोक उद्धृत किया है । दीक्षित मनुष्य भले ही अपनी स्त्री के साथ विवाह करता हो, परन्तु उस की म्त्री कन्या है कि नहीं? यदि कन्या नहीं है तो 'कन्यावरणं विवाहः' इस परिभाषा के अनुसार वह विवाह ही कैसे कहा जा सकता है ? लेकिन जिनसेनाचार्य ने उसे विवाह कहा है। अगर वह स्त्री, विवाह होने के कारण कन्या मानो जासकती है तो विधवा भी कन्या मानी जा सकती है। सधवा तो कन्या कहला सके और विधवा कन्या न कहला सके-यह नहीं हो सकता।
आक्षेप (ग)-कन्याएँ जिस प्रकार शखिनी पद्मिनी आदि होती हैं, उसी प्रकार पुरुष भी। जब स्त्री पुरुष समान गुणवाले नहीं होतं तत्र वैमनस्य, सन्तानादि का प्रभाव होता है। इसलिये सागारधर्मामृत में कन्या के लिये निर्दोष विशेषण दिया है। तुम इन महत्त्वपूर्ण शब्दों का भाव ही नहीं समझे।
समाधान-समान गुणवाले स्त्री पुरुष होने से लाभ है। परन्तु हमारा कहना यह है कि अगर शङ्गिनी आदि भेदों की समानता नहीं पाई जाय तो विवाह धर्मविरुद्ध कह लायगा या नहीं ? यदि धर्मविरुद्ध कहलायगा तब आजकल के फी सदी १. विवाह धर्मविरुद्ध ठहरेंगे, क्योंकि इन भेदों का विचार ही नहीं किया जाता। अन्य प्रकार के वृद्धविवाहादि अनमेल विवाह भी धर्मविरुष ठहरेंगे । फिर केवल विधवाविवाह के पीछे