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हास्य पिलास और तमाम मनोरंजन को सामग्रियां इनके लिये मना है। इच्छा न होते हुए भी बर्ष भर में इनको दम बोस उपवास करने पड़ते हैं। अब इनके समस्त अधिकारा का हरण हो चुका है। न तो पीहर हो में इन बिचारियों की कुछ कदर है और न सुसराल हो में इन प्रभागिनी को कुछ इज्जत है ! मानी अब तो इन विवारियों का जीवन कुछ जीवन ही नही है। घर के बाल बच्चों का पाखाना साफ करना, झाडू बुहारा करना, गाय भैंस बांध देना, घर भर के जूठे बरतन मांजना तथा सासु ससुर, देवर देवरानी, जेठ जेठानी, अड़ोसी पड़ोसो को गालियां और झिड़कियां सुनना और इन सबके मुआबजे में खाने को बासो रोटी और सड़ी बुसी साग पालेना मात्र ही इनका काम रह गया है। विवारी ये दोना होना विधवाए अपने जीवन के समस्त प्रानन्द, योधन की समस्त विभूति श्रीर हृदय को समस्त इच्छाए सदव के लिये समाजके मुखिया पटेल चौर्धाग्या की क्रूर बलिवेदी पर भेंट कर चुकी है और आज वे अपनी दग्ध पाहो से इस हिन्दू समाज को बुरे २ शाप दे रही हैं। इनमें से बहुत सी युवती विधवाए तो बड़े शहरों में अपने मकानों के झरोखा में बैठ कर अपने सौन्दर्य और मनीत्व को बाजार वस्तुओं के समान बचने को मजबूर हुई है और बहुत सो विधवा ऐसी भी हैं जो अपने पंच परमेश्वरा और हत्यारे मां बाप को रोतो हुई अपनी रात्री करवटें बदल २ कर और प्रकाश के तारे गिन २ कर व्यतीत कर रही हैं । सैकडा विधवाए ऐमी है जो कई प्रकार के प्रलोभनो के बशोमूत होकर तथा अपनी कामेच्छाधा को रोक सकने में असमर्थ होने से लोक लाज के कारण दिन रात गर्भपान और भ्रूण हत्याए करती हुई समाज को कलंकित कर रही है। हजारों विधवाएं जगह २ ऐसी भी हैं । जो विधर्मियों तथा अन्यान्य जातियों के घर बसा २ कर अपनी कोख से हमारी हो जड़ काटने वाली संताने पैदा कर रही हैं। सैकड़ों जगह देवर भोजाई और