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ससुर बहू के बहुत बुरे २ किस्से भी सुनाई पड़ते हैं। यहां तक भो सुना जाता है कि कई युवती विधवा माताएं अपने दत्तक पुत्रों से अनुचित सम्बन्ध रखता हैं।
इस वृद्ध विवाह की कुरीति से देश में कन्या क्रय-विकय तो बहुत ही चल पड़ा है। धनी लोग तो ५० वर्ष की उम्र तक पहुंच चुकने पर भी विवाह की इच्छा रखते हैं और अपनी इच्छा को सफल करने के लिये तीन तीन और चार चार शादियां कर चुकते है। पति के मरते ही विधवाओं को जो दुर्दशा होती है उसका थोड़ा सा चित्र ऊपर खींचा गया है। इसके विपरीत पत्नी के मरने पर विधु [रंडवों ] के कारनामें भी किसी से छिपे हुये नहीं है । स्त्री के मरने पर स्मशान ही में सगाइयों की चरचा चलने लग जाती है । लड़की के बाप को देने के लिये थैलियों के मूंह खुल जाते, है, अपनी उम्र कम दिखलान के लिये रुपयों के ज़ोर से ब्राह्मण दवता जी की नकली जन्म पत्रिका तैयार करने लग जाते है। रंडवे जी या तोव तक दो दो महीनों में हजामत बनवाते थे लेकिन अब तो दुसरे तीसरे दिन ही उस्तरा फिराया जाता है। मूंछें भी खस खसी कराजी जाती हैं ज़रूरत हुई तो बढ़िया खिजाव भी लगाया जाता है। क्या कहिये अब तो ज़मीन में गड़े हुये ज़ेवर भी निकाल २ कर पहने जाते है: गर्ज यह कि रंडव साहब हर तरह से अपना रूप रंग और धन दौलत बतलाने में लगे रहते हैं और किसी न किसी तरह किसी छोटी सी बालिका से शादी करके उसके भावी सुहाग पर अपनी नीच काम वासना का खंजर झोंक देते हैं । प्रकृति के नियमानुसार लड़के और लड़की बराबर ही पैदा होते हैं लेकिन ऐसी दशा में जब
एक पुरुष मरते २ भी तीसरी और चौथी शादी कर लेता है यानी एक पुरुष तीन २ और चार २ लड़कियों को अपनी अर्द्धाङ्गिनीयां वना लेता है तो उधर लड़कियों की कमी पड़ जाती है। इस तरह कुंवारे