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कुप्रथाश्रो का सर्वदा प्रभाव होने जाने पर भी विधवाएँ बन्द नहीं हो मकनी--चाहे वह अल्प संख्या में ही बनें-इस लिये उन विधवाओं के विवाह की भी आवश्यता रहेगी अत. “विधवाविवाह" का प्रचार किस तरह बन्द किया जासकता है।
कुप्रथाओं को रोकने के साथ साथ "विधवाविवाह" का प्रचार भी अत्यन्त आवश्यक है, क्यों कि कुप्रथाओं के बन्द होने में विधवाएँ बहुत थोड़ी बनंगी और विधवाविवाह में उनका जीवन सुखी बन सकेगा।
उपरोक विवेचन में मालूम हुआ कि बिना विधवाविवह के कुप्रथाओं का प्रभाव भी अधिक लाभदायक नहीं हो सकता जो दांप 'विधवाविवाह में अपहरण हो सकता है वह कुप्रथात्रों के अभाव में सर्वथा दूर नहीं हो सकता। ___ हम चाहते हैं कि तमाम कुप्रथाश्रो का शीघ्र सर्वथा अभाव हो जाय, परन्तु मित्रों ! 'विधवाविवाह" की आवश्य कता हर समय है । संवर के साथ साथ निर्जरा न हो तो कम काम चल मकता है ?
अंतिम निवेदन अब मैं अपना लेख समाप्त करता है। मैंने यहां विधवा विवाह" की खास खास बातों पर संक्षेप में प्रकाश डाला है। आशा है कि बड़े २ विद्वान इस विषय पर प्रकाश डाल कर साधारण समाज का भ्रन दूर करेंगे । मैं समझता हूँ कि बुद्धिमान् मनुष्य के लिये इतना ही लेख बहुत काफी होगा, क्योंकि बुद्धिमान के लिये इशारा ही काफी होता है । जैसा शंखसादी ने कहा भी है 'अक्लमदांग इशारा काफीस्त" अर्थात्-बुद्धिमान के लिये संकेत काफी है।"
* यह फारसी के बड़े उक्तम कवि हो चुके हैं ।