Book Title: Jain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Author(s): Savyasachi
Publisher: Jain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi

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Page 392
________________ १३ मन लगाकर पालना चाहिये । अपने मन में कभी भी किसी दूसरे पुरुप से मिलने का बुराभाव न लाना चाहिये न आपस में विवाह शादी की चर्चा लाना चाहिये, न ग्योटे गीत गाना चाहिये, न उन स्त्रियों की संगत करनी चाहिये जो वर चारित्र वाली है । कभी लड़कों से व लड़कियों मे आपम में हं.मी मश्करी न करनी चाहिये शील धम बड़ा धर्म है। जो स्त्री शील बिगाड़ देनी है उसका पाप छिपता नहीं है । वह यहां भी अपना जन्म नाश करता है और पग्लोक के लिये नरकादि गति बांध लेनी है जग में अपया पानी है । कन्या को उचित है जय नक विदा न हो विद्या पढ़ने में मन लगावे ब्रह्मचर्य पाले, वन चामिणी हे. पान न स्यावे, ग्वाट पर न मोवे, अन्गारित कपड़े न पहने मादगी से रहे, गहनों का शोक न कर. मने नमाशों में न जाये, कहानी किस्से न पड़े, बाजार की चाट न खावं, शुद्र घर का भोजन दो दफ मंनाए ये करले । मन अपना विद्यालाभ व धर्म में लगाये गन भगवान का ध्यान करे, पूजन करे, शास्त्र पहे, गुरु महागज का कई वियों के माथ दर्शन करे, उनका उपदेश मने, उनको भक्ति पूर्वक दान देवे नियम पाखड़ी लेने रहे. सवेरे व शाम को थोड़ी देर अलग बैठ करके मामायिक ध्यान करती रहे । जहां नक ही दिन में खावे जो कन्या धर्म में चिन रकम्वेगी. सतसंगति में रहेगी वही

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