Book Title: Jain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Author(s): Savyasachi
Publisher: Jain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi

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Page 393
________________ ब्रह्मचर्य को पाल सकेगी। ब्रह्मचय ही सं कन्या का शरीर दृढ़ बनना है। (५) पग्ग्रिह की ज्यादा लालसा न रग्वनी चाहिये घर में जो संतोप से मिले उम खाकर व पहन कर मनको आनन्द में ग्वग्वे । (६) कभी मांस को न खावं, वह डाक्टग दवा भी न ग्वा जिन में मांस का मेल हो । मड़ी बुसी बासी चीन ग्वान से भी मांस का दाप लगता है उससे भी जहां नक हो बचे। (७) नशा न पीव, कन्या को चाहिये कि कभी भूल कर भी शगव न पीव, भांग न पीव, कोकेन न ग्वावे । नशा पागल बना देना है नशे की आदत से प्राणी नशेबाज़ बन जाता है जिन डाक्टरी दवाओं में शगव पड़ी हो उनको भी न ग्वावं । (८) मध न ग्वाव-मध मविश्वयों को कष्ट देकर व उनके बच्चों को मारकर व निचोड़ कर आता है व मांस के समान उममें कीड़ पैदा होते है व मग्ते है ।। इन आठ बातों का पालन भने प्रकार करनी ग्हें जब तक विद्या पहें और विवाह न होवे । ____ (२) दुसरा कर्तव्य यह है कि १६वां वर्ष जब शुरू हो तब अपना विवाह कराने का विचार करें १६ वर्ष से पहले विवाह न करावें माता पिता को समझादें कि जन्दी

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