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है और मन में चाहती भी है कि यदि ब्रह्मचर्य नहीं पलता है तो पुनर्विवाह कर डालें परन्तु समाज की लाज के भय से या संग्क्षकों के भय से अपना भाव प्रगट करने से हिचकिचाती है ।
यह हिचकिचाना उनके जीवनका नाशक होरहा है उधर लजा वश व पुनर्विवाह को तय्यार नहीं होती हैं
घर काम भाव की प्रेरणा वरा गप्त पाप में फंस जाती है और अपना उभय लोक का जीवन बिगाड़ लेनी है इलिये हम उन असमर्थ बाल व युवान विधवाओं में कह ग कि वे अपने को प्रथम में बचावं या तो वे पुण ब्रह्मचर्य पाल मा पुनर्विवाह करके एक देश या अपर्ण ब्रह्मचर्य पालं । यमनों में फंसकर अपना अमल्य मीवन न नष्ट करें । हमारी अपील इन भोली भाली विधवाओं के संरक्षकों में भी है-चाहे वे उनके माता पिना हों, भाई बहिन हों या माम श्वसुर जेठ देवर हों व अन्य कोई सवधी हो कि वे विधवाओं को यह सच्चा सिद्धांत समझा --पर्ण ब्रह्मचर्य पालने के भाव हों तो श्राविकाश्रमों में भेज या वैगग्य मामानों में रकावें नहीं नो उनको पनर्विवाद कगने में तय्यार करके उनके जीयन को ग्रही जीवन बनवाद जिम में व्यभिचार आदि पापों से बचें।
यदि विधवाओं ने और उनके मरनकों ने ध्यान