Book Title: Jain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Author(s): Savyasachi
Publisher: Jain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi

View full book text
Previous | Next

Page 387
________________ वही हेतु एक विधवा को पनविवाह करने में है दोनों की अन्तरंग की कामवासना व शारीरिक स्थिति द्वितीय विवाह करने की प्रेरणा करती है। यदि विधवाओं में कदाचिन किसी कारण से रजस्वला होना बंद हो जाता और उन में काम वासना ही न रहनी नव तो ऐसा कहा जा सता था कि जिन कारणों में प्रेरित होकर एक विधुर को पुनर्विवाह करना पड़ता है वे कारण विधवाम नहीं पाए जाते इमलिये उनका विवाह करना निग्थक है परन्त ऐसा नहीं है दोनों स्त्री और पम्पों में समान कारण है नव जैसे विधुर को पुनर्विवाह करने का हक है वैसे एक विधवा को पुनर्विवाह करने का हक है। यह विधवा विवाह न व्यभिचार है न अन्याय है किन्न नानि पूण विवाह सम्बन्ध तथा न्याय यक्त माग है। इसमें श्राविका के ब्रह्मचर्य अगावत में अथात एक देश ब्रमचय पालने के प्रण में कोई बाधा नहीं पाती है। बहुन में पुरुप युवक इस सच्चे सिद्धांत को समझ गए है और इस लिये विधवाओं से लग्न करने की तय्यार है-इस संबन्ध में उनक पत्र निन्य ही विधवा विवाह महायक सभाओं के मंत्रियों के पास आया करने ह परंतु बाल व युवान विधवाओं की समझ में अभी तक यह मचा सिद्धांन नहीं बैठा है । वं विचारी माली विधवाएं व्यभिचार को पुनर्विवाद से बहुन बुग समझती

Loading...

Page Navigation
1 ... 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398