Book Title: Jain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Author(s): Savyasachi
Publisher: Jain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi

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Page 384
________________ मालम होता है कि जहां आज ५० घर हैं वहां २०१२५ वर्ण पीछे २५ घर रह जायगे क्योंकि ये सब ५० घर जोईवाले नहीं है इनमें कितने घरों में मात्र कुमार व विधुर पाप है व किनने घरों में मात्र विधवाएं ही है । किसी भी समाज के जीवन को स्थिर रखने के लिये पुर.पा का विवाहित होकर मंतान जन्म देना अति शय अावश्यक है । नव जैन समाज में इस आवश्यकता को कैसे पग किया जाये । इसका उपाय यही समझ में श्राना है कुगरी कन्याय कुमागे ही को व्याही जावें पमा पहा नियम किया जा । फिर भी यदि अविवाहित कुमार रहे ना उनका उनकी उम में छोटी वाल विधवाएं व युवा विधवार विवाही जावे । तथा व पुरुप निनको दवाग तिवाग या ची बाग विवाह करना हो वे अपनी उम में कुछ छोटी विधवाओं को ही विवाह । समाज में इस व्यवस्था को जारी करने में विना संतान पैदा किये बहुत कम पुरूप व मि मरेगा । इस व्यवस्था के लिय यह अति आवश्यक है कि विधवाएं अपने जीवन को मफल करें । विधवाओं को अपना जीवन न्याय मार्गी बनाना चाहिये उनको कभी भी व्यभिचार व गुप्त पाप में नहीं फंसना चाहिये । यह न्यभिचार मनुष्य हन्या आदि ग्रादि बोर अनया का कारण है । यदि उनको इस लोक में मदाचार मय जीवन विताना है और परलोक में

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