Book Title: Jain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Author(s): Savyasachi
Publisher: Jain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi

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Page 376
________________ ( १५ ) मैं अपने मित्रों से निवेदन करता हूँ कि आप अपने हृदय से इस मिथ्या वासना को कि “विधवा विवाह" धर्म विरुध है, दूर कर दीजिये । यदि आप निष्पक्ष रीति से विचार करें तो आपको श्रानी गलती ज्ञात हो जायगी। आपको चाहिये कि आप सत्य के कहने में निर्भय बनें। इस बात का भ्रम छोड़ दीजिये कि इसका फल क्या होगा ? सत्य बात के लिग यदि जीवन भी न्योछावर हो जाय तो भी कुछ चिन्ता मत करो। सच्चा वीर वही होता है जो सत्य बात के कहने में कुछ भी नहीं भय खाता । यदि उसको सत्य बात पर जान भी देनी पड़े, तो वह वीरता से हंसते हुए जान पर खेल जाता है। सच्ची बात के कहने में डरना या संकोच करना महा पाप है । जो मनुष्य हठ पूर्वक अपनी झूठी बात पर जमा रहता है और सत्य को ग्रहण नहीं करता, वही नीच है। आपको मिथ्यात्व छोड़ कर सम्यक्तव की ओर जाना चाहिये, क्योंकि यही हित का मार्ग है। झूठी बात पर डंटे रहना वुद्धिमानी नहीं है । "धर्म डूबा "धर्म डूबा " की आवाज लगा कर व्यर्थ ही अपनी जिल्हा को न थकाइये । धर्म न तो रूढ़ियों में है, न रक्त मांस में, न हड्डी में, न कोरी 'श्रहा - हूहू' में, न कोरी 'धर्म डूबा २' में, वह आत्मा में है। पेट के लिये ढोंग बना कर अपनी आत्मा का घात न कीजिये सुधारकों को बुरा कह २ कर साधारण समाज की धांक में न डालिये । विधवात्रों पर अत्याचार करना छोड़ दीजिये उनका विवाह करने में ही उनका जीवन सुखी बन सकता है और वे व्यभिचार सं बच सकती हैं, इसलिये आप "विधवा विवाह" का विरोध छोड़ कर इसके प्रचार में जुट कर अपनी सत्यता, वीरता, निर्भयता तथा मनुष्यता का प्रमाण दीजिये । स्त्रियों पर अत्या चार करना महाअनर्थ है, विधवाओं में जबरदस्ती वैधव्य पलवाना महा अत्याचार है । यह महा अत्याचार सती प्रथा

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