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( १२ ) प्रकार एक पुरुष अनेक स्त्रियों का सेवन कर सकता है, लेकिन अनेक पुरुष एक स्त्री का मेवन नहीं कर सकतं क्योंकि स्त्री पुरुष में भोज्य भाजक सम्बन्ध है।
भांग के काम में स्त्री पुरुष दोनों को सुख होता है, यदि उनमें उपरोक्त सम्बन्ध होना नो स्त्री ( भोज्य । को सुख नहीं होना चाहिये था, अर्थात् पुरुष भोजक) को ही सुख होना चाहिये था, लेकिन यहां स्त्री पुरुर दोनों को सुख होता है। इमलिये मालूम हुआ कि स्त्री पुरुष में भोज्य भाजक सम्बन्ध नहीं है। ___ हमें इस बात का अत्यन्त खेद है कि हमारे विरोधी मित्र इतनी मगल बातों में, जिनमें युक्ति ष प्रमाण की आवश्यकता ही नहीं है गलती कर जाते हैं खैर.. ! __ यदि 'दुर्जनताप न्याय' में स्त्री पुरुष में भाज्य भाजक सम्बन्ध मान भी लिया जाय तब भी "विधवा विवाह" में इसमें कोई विरोध नहीं पाता । क्यों कि जिस प्रकार थाली को मांझ धोकर साफ कर लिया जाता है। और उसमें दूसरा पुरुष भोजन कर सकता है, उसी प्रकार 'मासिक-धर्म के बाद स्त्री दुसरं पुरुष के काम में लाई जा सकती है।"
६. अदभुत न्याय ! हमा घिगंधी मित्र विधवाओं के विवाह का तो खूब विरोध करते हैं, परन्तु विधुरों के विवाह का समर्थन करते हैं । वाह ! वाह !! क्या अच्छा न्याय है। ___ जब कि पुरुष पत्नि रखते हुये भी दूसरी पनि बना लता है, तो विधवा.पति न रहते हुये भी दूसरा पति क्यों नहीं बना सकती समझ में नहीं आता कि विधुरों का विवाह ना हो जाय । परन्तु विधवाका न हो! विधुरों को यह रियायत क्यों ? स्त्रियों के लिये तो पुरुषों में भी जियादा रियायत