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( ७ ) अहल्या, द्रोपदी, तारा, कुंती मन्दोदरी, तथा ।
पंचकन्याः स्मरेन्नित्य महापातक नाशनम् ।। यहां पांचों स्त्रियां विवाहिता तथा क्षत योनि थीं, फिर भी उन्हें 'कन्या' कहा गया है।
"पद्म पुराण में सुग्रीवकी स्त्री सुतागको उस समय कन्या कहा गया है जब कि वह दो बच्चों की मां होगई थी।
"केनो पायेन तांकन्यां लप्सये निवृत्तिदायिनी।"
जरा विचार कीजिये कि जब दो बच्चों की मां को कन्या कहा है तो फिर विधवा को क्यों नहीं कहा जा सकता? जिस प्रकार विवाह में कुमारी कन्या दी जा सकती है उसी प्रकार विधवा कन्या भी दी जा सकती है। और यही विवाह है, न कि व्यभिचार ।
और भी देखियेविधवा जब विवाह करती है, तब यह प्रगट रूप से करती है, गुप्त रूप से नहीं करती । जब इसमें किसी प्रकार का गुप्तपना नहीं, न किसी प्रकार का भय, तब यह कार्य कभी भी व्यभिचार नहीं कहा सकता क्यों कि व्यभिचार में भय व लजा पाई जाती है।
यभिचार एक जुर्म है जिसकी सजा गवर्नमेंट (Government) से मिलती है। यदि 'विधवा विवाह" व्यभिचार होता तो यह भी एक जुर्म होता और गवर्नमेन्ट इस पर सजा लगाती, परन्तु गवर्नमेन्ट का कोई कानुन ( It w ) ऐसा नहीं जिसस “विधवा विवाह" करने व कराने वालों को सजा दी जाय । इससे स्पष्ट है कि "विधवा विवाह" व्यभिचार नहीं है। यदि यह व्यभिचार होता तो गवर्नमेन्ट इसको जुर्म करार देती।