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और तब फिर उसमें कोई भी बात आपत्ति जनक न होगी। अब इस विधवा विवाह के विरोध में होने वाले प्रक्षेपों की ओर कुछ भी ध्यान न देकर हमें अपनी शक्ति को इसके प्रचार में लगा देना नाहिये। धर्म के बने का बहाना लेकर चिल्लाने वाले लोग बास्तत्र मेक कार्य नहीं हैं और न उनको समाज सुधार के प्रश्न से ही का दिल पी | उनसे यह तो पूछिये कि आपने कहां २ मैदान में जाकर वूढों से कन्याओं की रक्षा की है ? नि २ विधवाओं के लिये आपन मासिक वृत्तियां निकाल रखी है ? कौन सी विधवाओं के लिये पंचायतों ने अन्न और कपड़े का प्रबन्ध कर रखा है ? दो किरोड़ और बारह लाख हिन्दु विधवाओं के लिये क २ विधवा आश्वन कायम कर रखे हैं ? बूढ़ों का व्याह रोकने वाली कौन सी संस्थाओं का अपने सहायता दी है? समाज में बीस २ और पचीस २ वर्ष के हज़ारों कुंवार युवक बिना व्याह अपना जीवन व्यतीत कर रहे है उनकी शादी के लिये किस २ ने कितमः २ प्रयत्न किया है? बूढों के साथ अपनी छोट २ कन्याओं को व्याहने वाले माता पिताम ओर छोटो २ पच्चित्र के साथ व्याह करने वाले बूढ़ों को आपने पंचायत से क्या दण्ड दिलवाया है ? विवाह आदि मांगलिक प्रसंगो परजां बहुत सा रुपया महाव्यभिचारिणी और कुशल रचने वाली बश्याओं का नाच गाना कराने में खर्च कर दिया जाता है वहां क्या कभी आपन दस बीस रुपया इन सदाचारिणी असहाया और दीना छीना विधवा के प्रति पालन में भी सहायता रूप में दिया है ? पस उत्तर में सूखा और बेहूदा सा जव ब मिल जाता है । परन्तु ये लोग इस विषय पर युक्तिपूर्वक विचारने को कभी तैयार नहीं होते । बल्कि ये धर्म का स्तम्भ बनाने वाले तो उलटा विधावा का माल, चाटने और हडपने को तैयार रहते हैं। उनके पतियो का नुकता चाटकर बाद में कभी भी उनकी सार सम्हाल नहीं पूछो जाती। हां, वेशक प्रगर उनके पास कुछ पैसा हुआ तो उसको