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लिख रहा हूँ। बड़े २ विद्वानों के बीच में मुझ जैसे क्षुद्र व्यक्ति का पड़ना धृष्टता ही है, परन्तु क्या किया जाय, समय ऐसा श्रागया है कि चुपकी साधना भी एक बड़े साहस का काम है ।
मैं विद्वान नहीं हूँ, परन्तु थोड़ा सा अवश्य पढ़ा हुआ हूँ । सत्य का पुजारी हूँ. जो बात वुद्धिकी कसौटी पर ठीक उतरती है उसे अपनाता हूँ। मैं अपने में गलतियों का होना स्वीकार करता हूँ, परन्तु जबतक वह गलती संयुक्ति रीतिस मेरे सामन न लाई जाय, तब तक मैं उसे स्वीकार नहीं कर सकता । धर्मायों, प्रलोभनों सामाजिकदंड व सभाओं के कारण अपनी बात को, जिसे मैं सत्य समझता हूँ, वापिस लेना मेरी शक्ति से बाहर है।
पाठकों से सप्रेम निवेदन है कि वे मेरे लेख पर शांति से विचार करें और असत्य की तिलांजली देकर सत्यको अपनावें ।
१. विधवा विवाह व्यभिचार नही है ।
हमारे विरोधी मित्र "विधवा विवाह को व्यभिचार बतलाते हैं, वे कहते है कि "विधवा विवाह" से व्यभिचार की निवृत्ति नहीं होसकती। यहां मैं पहिले यही विचार करूँगा कि उनका यह कहना कहां तक सत्य है :
व्यभिचार का लक्षण शास्त्रकारों ने यह बतलाया है:'निजं विहाय परंणत्याकं भोगत्त्वं व्यभिचारत्वं'
अर्थात- अपने पति को छोड़ कर अन्य के साथ विषय सेवन करना व्यभिचार है ।"
जिसके साथ नियमानुसार विवाह हुआ हो वही स्वपुरुष या स्वस्त्री है। और जिसके साथ नियमानुसार विवाह न हुआ हो वही परपुरुष या परस्त्री है।