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जैन समाज का सौभाग्य । विधवाओं की संख्या जिस कदर अहिंसा धनुयायी जैन समाज में है उतनी हिन्दुस्तान की किसी जाति में नहीं पायी जाती । जहाँ सनातन धर्मियों में प्रति सैकड़ा १९.१, आर्यममाजियों में १४.९ उद्म सम जियों में १२.८, सिवनों में १३.५ और बौद्धों में ११.५ विधवा है वहा जैन समाज में २५.५ विधवाएं है। जैन समाज के लिये यह बग्न ही सोचने की बात है। लेकिन यह बड़ी प्रसन्नता की बात है कि द्रव्य, क्षेत्र, काल और भार के पारखी मुबार जना माहियों ने इन विवाओं की दुर्दशा पर दया लाकर अब विधवा विवाह सहायक सभायें स्थापित करना शुरु कर दिया है । यह भा, संतोष की बात है कि जैन समाज में जगह जगह इस प्रथा की अ वश्यक्ता को अनुभव मे लाने वाले धार सुधारक पैदा होते जा रहे
। जो जेनी भाई अपने विधुः लह और विधवा पुत्रियों का ऐसा सम्बन्ध करना चाहे उनको नीचे लिग्वे पों पर पत्र व्यवहार करना चाहिये:----
(१) श्रीयुत या फूलचन्द जैन, मंत्री, जैन विधवा विवाह र हायक सभा मोतीकटरा, आगरा (२०६०) (२) श्रीयुत मस्टर चिम्मनलाल जैन, रिटायई इंटेशन मास्टर उपमंत्री, जन बाल विधवा विवह सहायक सभा
गली प.पलवाली, धर्मपुरा, देइली हमार जैनी भाइयों को चाहिये कि वे अपनी विधवा बहन मोटियों का दुःख निवारण कर के उन विवाह करार्दै । एमय जीवन व्यतीत करने और कराने की अपेक्ष, शान्तिमय जीवन व्यतीन करना और कराना ही जैन धर्म का मुरूम सिद्धात है ।।
निवेदक- मोतीलाल पहाड्या जैन, कुनाड़ी।