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खून करता है । विधवा विवाह के मिशन का काम अब वहुत जोर से चलना चाहिये ! इस मिशन को क्रियात्मक बनाना पड़ेगा और इस प्रथा का प्रचार बहुत तेजी के साथ करना पड़ेगा अब यह विषय किसी भी तरह टाल देने योग्य नहीं रहा है । ज्यॉ २ इसमें ढोल की जा रही है त्यो २ ही हमारे सर्व नाश का समय निकट आता जाता है । धर्म के नाम पर शेखी मारने वाले ईर्षा के पुतलों को चिल्लोने दो, खूब गालियां देने दो, गहरा विरोध करन दो लेकिन स्वयं एक वीर सुधारक की तरह ग्रासात्मक भावों के साथ अपना कार्य करते रहो । विरोध होना ही सफलता का चिन्ह है, यही तो सफलता की लहराती हुई पताका है । किसी इक्त हुए को तिराना और गिरते हुए को उठाना महापुण्य कार्य है और इसीदृष्टि विन्दु से यह विधवा विवाह का मिशन धर्म का स्थिति करण अंग है । इसमें धर्म की प्रभावना के तत्व भरे हुए हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि
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- ब्रह्मचर्य और शील द्दी मनुष्य के लिये धर्म का श्रेष्ट मार्ग है । परन्तु अच्छे और बुरे की तुलना करने में अपेक्षा नय एक प्रधान वस्तु है । अतः गर्भपात और भ्रूण हत्याएँ करने तथा विधर्मियों के घर बसा २ कर अपनी कुत्ति से विधी संतान पैदा करने की अपेक्षा विधवाओं के लिय विधवा बिबाह एक महान उत्तम और धार्मिक कार्य है । यदि इस मिशन में पांच पीछा रखा तो इस हिन्दू समाज का मातम मनाने के लिये तैयार हो जाइये। यह खूब याद रखने की बात है कि जिस समाज ने परिस्थिति के महत्व को की है वह इस संसार में अधिक नहीं टिक सका है। यदि यह प्रथा पहले न थी तो न सही, प्राचीन होने ही से किसी प्रथा में सर्व श्रेष्ठता नहीं आती। जो प्रथा आज प्राचान गिनी जाती है वह एक दिन अवश्य ही नवीन थी। नय से नया परिवर्तन भी यदि बुद्धि की परीक्षा में सफल हो सकता है तो वही सर्व भ्रष्ट है याज की नवीन, प्रथा कुछ ही समय पश्चात् प्राचीनता का रूप धारण
न
समझ कर उसकी उपेक्ष
कर लेगी