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( २५ ) स्थान पर पैदा होने वाले अन्य देव को पति बना लेती हैं, गह बात तो बिलकुल सत्य है। जैसा कि आदिपुराण के निम्न लिखित श्लोकों से मालम होना है। भीमः साधुः पुरे पुडगकिरायां घातिघातनात् ।
-पर्व०४६ । श्लो० ३४ः । रम्ये शिवंकरोद्याने पंचमहान पूजितः । तस्थिवास्तं समागत्य चतस्रो देवयोषितः ॥ ४६॥ ३४६ ॥ वंदित्वाधर्ममाकरार्य पापादम्मत्पतिमतः।। त्रिलोकेशवदाम्माकं पतिः कान्यो भविष्यति ॥ ४६॥३५०॥
पुण्डरीकपुर के शिवंकर नामक बगीचे में भीम नामक साधु को घातिया कर्मों के नाश करने से केवल ज्ञान हुा । उन के पास चार देवाङ्गनाएं आई। बन्दना की, धर्म सुना । फिर पूछा-हे त्रिलोकेश ! पापकर्म के उदय से हमारा पति मर गया है, इसलिये कहिये कि हमारा दमरा पति कोन होगा?
__ यह बात दुमरी है कि बहुतसो देवाङ्गनाओं को विधवा नहीं होना पड़ता, इससे दूसरा पति नहीं करना पड़ता। परन्तु जिन्हें करने की ज़रूरत होती है वे दूसरे पति का त्याग नहीं कर देती । हाँ, देवाङ्गनाएँ दूसरे देव को नहीं पकड़ती, अपने नियोगी को ही पकड़नी हैं; सो यह बात कर्मभूमि में भी है । मध्यलोक में भी नियोगी के साथ ही दाम्पत्यसम्बन्ध होता है। हाँ, देवगति में नियोगी पुरुष और नियोगिनी स्त्री का चुनाव (नियोग = नियुक्ति) दैव ही कर देता है जबकि कर्म. भूमि में नियोगी और नियोगिनी के लिये पुरुषार्थ करना पड़ता है। सो इस प्रकार का पुरुषार्थ विधवाओं के लिये ही नहीं करना पड़ता, कुमारियों के लिये भी करना पड़ता है। देवकृत और प्रयत्नकृत नियोग की बात से हमें कुछ मतलब नहीं। देखना यह है कि देवगति में देवियाँ एक देव के मरने पर