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सब से बड़ी उदारता तो हमें अपने धर्म ग्रन्थों में मिलती है। कोई मनुष्य चाहं बह कितना भी व्यभिचारी या पापी रहा हो, उसे मुनि बनने का अधिकार है। कोई स्त्री चाहे वह कितनी ही व्यभिचारिणी रही हो, उसे आर्यिका बनने का अधिकार है । देखो गजा मधु का चरित्र-उसकी रमेल गनी चन्द्राभा ने श्रार्यिका-व्रत लिये: रुद्र की माता उपेष्टा एक मुनि के साथ फंस गई,लड़का पैदा हुआ बाद में वह फिर आर्यिका बन गई। प्रायश्चित शास्त्रों में भी पंमी भ्रष्ट आर्यिकाओं तक को फिर पार्यिका की दीक्षा दे देने का विधान ' है । मुदृष्टि मुनार तो व्यभिचारिंगी स्त्री की सन्तान होने पर भी मोक्ष गया । इन सब उदाहरणों से साफ मानम होता है कि व्यभिचार से भी मनुष्य के अधिकार नहीं छिन सकते । फिर विधवा विवाह तो ब्रह्मचर्याणु व्रत का माधक है । उसमे धर्म हानि तो कैसे हो सकती है।
यहाँ हमने खास खाम बानों पा संक्षेप में प्रकाश डाला है। अभी तो वहन सी बातें हैं जिनके ऊपर प्रकाश डालना है आशा है समाज के प्रसिद्ध लेखक श्रोर विद्वान इस विषय पर प्रकाश डाला।
अन्त में हम जैन जगत आदि पत्रों के सम्पादकों से निवेदन करते है कि आप लोग सत्य के पथ में बढ़ करके बीच में ही क्यों रह गये । । यह बड़े आश्चर्य की बात है
ॐदग्बारीलाल जी न्यायतीर्थ के 'धर्म और लोकाचार' शीर्षक लेख में इस बात का खुलासा प्रमाण देकर किया गया है । (लेखक)
जिस तरह से हमारी विधवा वहिने अत्याचारी पुरुष समाज के भय तथा अपने संकोच नमाव के कारण