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हो या और कोई ऐहिक स्वार्थ हो तो हमारी बात न सुनिये परन्तु उसमें सशा धर्म प्रेम हो तो जब तक पृथ्वी फटे तब तक हमारे लेख पर विचार कीजिये । विरोध करना हो तो अवश्य कीजिये, नहीं तो हिम्मत के साथ सच बोलिये।
पुरुष समाज से हम कहेंगे, कि समाज पुरुषों की ही नहीं, स्त्रियों की भी है। पापोदय की चिकित्सा पुरुषों के लिये ही नहीं,स्त्रियों के लिये भी है । रूढ़ि के लिये सत्यकी हत्या मत करो ! किन्तु सत्य के लिये रूढ़ियों को मिटादो।
देवियों से यह कहेंगे कि आप आजीवन ब्रह्मचर्य पालन करना चाहती हैं नो बड़ी खुशीसे करें; हम आपके सामने सिर झुकाते हैं किन्तु रो रो कर ब्रह्मचर्यका पालन न करें और ब्रह्म चर्य का ढोंग न करें। वैधव्य का पालन इसलिये करें कि
आपको पालन करने की इच्छा है, न कि इसलिये कि समाज विधवा विवाह को बुरा समझती है । यदि आपको वैधव्य की अपेक्षा गार्हस्थ्य जीवन ही ज्यादा पसन्द है तो अपने पुन: विवाह के अधिकार का उपयोग करके विशुद्ध ब्रह्मचर्याणुव्रत पालन करें। धर्मशान शून्य स्वार्थी निर्दय पुरुषों को कोई हक्क नहीं है कि जिसके पालन में वे स्वयं फिसल जाते हैं वही बात दूसरों से जबर्दस्ती पलवावें । याद रखो ! वे स्वार्थी पुरुष तुम्हे मनुष्य नहीं, जूठी थाली समझते है । इसलिये तुम अपने गौरव की रक्षा करी । विश्वास रक्खो कि मनुष्य जाति की स्थिति के लिये पुरुषों की अपेक्षा त्रियाँ अधिक आवश्यक हैं।
आशा है सभी श्रेणी के व्यक्ति इस लेख पर विचार करेंगे और पक्ष में या विपक्ष में सम्मति अवश्य देंगे ।