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कि आप लोग "विधवा-विवाह" सरीखे धर्मानुकल कार्य के भी विरोधी हैं।
जैन गजट आदि पत्र के सम्पादकों से भी हम निवेदन करते हैं कि आप लोग मिथ्यात्व को छोड़ो ! धर्म का निवास स्थान न तो रूढ़ियों में है, न चमड़ में है, न कोरी वाह वाही में है, वह आन्मा में है। धर्म के लिये स्त्रियों पर प्रत्या चार करने की जरूरत नहीं है। हदय को पत्थर बनाने की ज़रूरत नहीं है। जबर्दस्ती वैधव्य पलवाना सती प्रथा से भी बढ़ कर पाप है। सती प्रथा से स्त्रियों को १०-१५ मिनट जलना पड़ता था, वैधव्य से जीवन भर जलना पड़ता है। इसलिये सती प्रथा यदि मिथ्यात्व है तो ज़बर्दस्ती का वैधव्य महा मिथ्यात्व है। आप लोग मिथ्यात्व मे छूटकर महामिथ्यान्व में न फैसिये, बल्कि सम्यक्त्व की ओर भाइये।
समाज के उन विद्वानों में भी हम निवेदन करते हैं जिन्हें कि आजीविका की चिन्ता नहीं है कि श्राप निष्पक्ष गति से विचार कीजिये । इस बात को भूल जाइये कि लोग क्या कहेंगे । सत्य के लिये, सिर्फ सत्य के लिये व जैनधर्म के लिये निःपक्ष हदय से विचार कीजिये कि धर्म क्या है । जो लोग यह कहते हैं कि विधवा विवाह को बात सुनते ही पृथ्वी क्यों नहीं फट जाती जिसमें हम समा जाते, उनसे भी हम प्रार्थना करेंगे कि पृथ्वी को फटने का निमन्त्रण देने के पहिले हृदय को फाड़िये और एकान्त में देखिये कि उसमें धर्म प्रेम है या झूठे नाम का प्रेम । यदि वह वाहवाही के लिये मर रहा
अपने हृदय के भाव जुबान से खुल्लम वुल्ला प्रकट नहीं करती, सम्भव है उसी तरह ये पत्र भी किसी भय या लज्जा के वश सत्य के मार्ग में बढ़ते बढ़ते रुक गये हो । स० जा०प्र०