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( १५० ) पन्द्रहवाँ प्रश्न ।
१२, १३, १४ और १५ वें प्रश्न बालविवाहविषयक हैं । इस में बालविवाह को नाजायज़ विवाह सिद्ध किया गया है । जो लोग सभ्यग्दृष्टि हैं वे तो विधवाविवाह के विगंधी क्यों होंगे, परन्तु जो लोग मिथ्यात्व के कारण से विधवाविवाहको ठीक नहीं समझते उन्हें चाहिये कि बालविधवा कहलाती हुई स्त्रियों के विवाह को स्वीकार करें क्योंकि बालविधवाएँ वास्तविक विधवाएँ नहीं हैं। एकबार न्यायशास्त्र के एक सुप्रसिद्ध प्राचार्य ने ( जो कि दिगम्बर जैन कहलाने पर भी तीब्र मिथ्यान्व के उदयसे या अन्य किमी लौकिक कारणसे विधवा. विवाह के विरोधी बन गये हैं ) कहा था-कि तुम बड़े मुर्ख हो जो बालविधवाओं को भी विधवा कहते हो। इसी तरह एकबार गोपालदास जी के मुख्य शिष्य और धर्मशास्त्र के बड़े भारी विद्वान् कहलाने वाले पगिडत जी ने भी कहा था-कि 'अक्षतयोनि विधवाओं के विवाह में तो कोई दोष नहीं हैं। यहाँ पर भी बालविवाह के विषय में चम्पतराय जी साहब ने जो तनकियाँ उठाई हैं उनके उत्तरी से यही बात साबित होती है। विवाह का सम्बन्ध ब्रह्मचर्यायुक्त से है। जिनका बाल्यावस्था में विवाह होगया वे ब्रह्मचर्याणुव्रत वाली कैसे कहला सकती हैं ? इसलिये उनका विवाहाधिकार तो कुमारी के समान ही रक्षित है। अगर वे महावत या सप्तम प्रतिमा धारण करे तब तो ठीक, नहीं तो उन्हें विवाह कर लेना चाहिये । यद्यपि हम कह चुके हैं कि बालविधवाएँ विधवा नहीं हैं परन्तु कोई विधवा हो या विधुर, कुमार हो या कुमारी, अगर वह ब्रह्मचर्य प्रतिमा या महाव्रत ग्रहण नहीं करता तो विवाह की इच्छा करने पर विवाह कर लेना अधर्म नहीं है।