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किसी को नहीं रखना आदि शास्त्रांत विधान व्यवहार धर्म की विविधता बताते हैं ।
सामाजिक नियमों के विषय में विद्यानन्द कहते हैं कि " सामाजिक नियम व्यवहार धर्म के साधक हैं अतः उनमें तबदीली करना मोक्ष मार्ग की ही तबदीलो है " सामाजिक नियमों में रद्दोबदल करने और मोक्षमार्ग में रद्दोबदल करने का एक ही अर्थ है ।" परन्तु इनके सहयोगी पण्डित श्रीलाल जी कहते हैं कि "सामाजिक नियम भिन्न भिन्न देशों में और भिन्न भिन्न कालों में और भिन्न भिन्न जातियों में प्रायः भिन्न भिन्न हुआ करते हैं । ...... "लौकिक विधि उसी रूप में करना चाहिये जैसी कि जहाँ हो" । इस तरह ये दानों आक्षेपक आपस में ही भिड़ गये हैं । यह कहने की ज़रूरत नहीं कि विद्यानन्दजी ने सामाजिक नियम का कुछ अर्थ ही नहीं समझा और वे प्रलापमात्र कर गये हैं । सामाजिक नियमों के विषय में श्रीलालजी का कहना ठीक है और वह हमारे वक्तव्य की टीका मात्र है | श्रीलालजी कहते हैं कि सामाजिक नियम धर्म की छाया में ही रहते हैं । हमने भी लिखा था कि सामाजिक नियम धर्मपोषक होना चाहिये। अब व्यवहार धर्मविषयक मतभेद रह जाता है, इसलिये उसके श्राक्षेपों का समाधान किया जाता /
आक्षेप ( क )- -व्यवहार धर्म निश्चय का साधक है । न संसारी श्रात्मा की अवस्था पलटती है न निश्चयधर्म की, न उसके साधक व्यवहार धर्म की । ( श्रीलाल )
समाधान - किसी भी द्रव्य की शुद्धावस्था दो तरह की नहीं होती परन्तु अशुद्धावस्था अनेक तरह की होती है, क्योंकि शुद्धावस्था स्वापेक्ष है और अशुद्धावस्था परापेक्ष है । पर द्रव्य श्रनन्त हैं इसलिये उनके निमित्त से होने वाली