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( १२ ) के लक्ष ग से साफ़ मालूम होती है। मतलब यह है कि पुरुष को भोजक और स्त्री का भोज्य कदापि नहीं कहा जा मकता । थाली के उदाहरण के स्थान पर गन्न का उदाहरण रखने से यह बात ओर भी अधिक स्पष्ट हो जाती है । पुरुष अगर स्त्री को थाली के अनुसार झूठी करके फेंक देना चाहते है तो स्त्रियां भी ऐसा ही कर सकती हैं। इस उदाहरण से बहुपत्नी को शंका का भी समाधान होजाता है। कहा जाता है कि पुरुष तो एक ही समय में अनेक स्त्रियों को रख सकता है लेकिन एक स्त्री अनेक पुरुषों को नहीं रख सकती । इस तरह स्त्रियाँ हीन है। इसका उत्तर गन्न के उदाहरण में है । अनेक व्यक्ति पक गन्ने के अनेक भागों को चूस सकते हैं: इस लिये वह गन्ना बड़ा नहीं हो जाता और न किसी का दृसग गन्ना चूसने का अधिकार छिन जाना है। दूसरी बात यह है कि एक पुरुष की अनेक स्त्री हाना या एक स्त्री के अनेक पुरुष होना यह देश देश का रिवाज है । यहाँ एक पुरुष अनेक स्त्री रखता है: तिब्बत में एक स्त्री अनेक पति रखती है। शक्ति सब में सब तरह की है। उपयोग होना देशकाल के ऊपर निर्भर है। इसलिये थाली वगैरह के उदाहरण देकर या भोज्य भोजक सम्बन्ध बता कर विधवा विवाह का निषेध करना निरर्थक हैं।
कई लोग कहने लगते हैं कि शास्त्रों में ब्राह्म प्राजा. पत्य आदि पाठ तरह के विवाह लिखे हैं। उनमें विधवाविवाह का नाम क्यों नहीं है ? इसका उत्तर बिलकुल सीधा है । ऐसे भाइयों को देखना चाहिये कि इन बाठो भेदों में कन्या (कुमारी) विवाह का उल्लेख कहाँ है ? तथा सजातीय विवाह, विजातीय विवाह, अनुलोम विवाह, प्रतिलोम विवाह आदि का भी उल्लेख कहाँ है ? मतलब यह है कि जैसे कुमारी का