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किया तो उनको पचासों गालियाँ मिलीं, घर वालों ने गालियां दी और विनागं की बड़ी फजीहत की, परन्तु कुछ दिनों बाद वह एक आदमी के घर में जाकर बैठ गई । इसी तरह कड़ी विधवाएँ अजनों के साथ भाग सकती हैं, भ्र ण-हत्या कर सकती है, गुप्त व्यभिचार कर सकती है, परन्तु मुह से अपना जन्म सिद्ध अधिकार नहीं मांग सकती । प्रायः प्रत्येक पुरुप को इस बात का पता होगा कि एम कार्यों में स्त्रियाँ मह से 'ना'ना' करती हैं और कार्य मे 'हां' 'हां' करती हैं। इसलिये स्त्रियों के इस विरोध का कोई मूल्य नहीं है।
अब हम इस विषय में विचार करते है कि क्या विधवा विवाह पाप है और अगर पाप है तो कौनमा? विधवाविवाह के विरोधियों का कहना है कि यह व्यभिचार है । अगर पूछा जाय कि व्यभिचार किस कहते हैं तो उत्तर मिलेगा कि परपुरुष या परस्त्री के साथ ग्मगा करना। अगर पूछा जाय कि परपुरुष और परस्त्री किसे कहते हैं ? तो उत्तर मिलंगा कि पुरुप का जिम स्त्री के साथ विवाह न हुआ हो वह पर म्बी,
और स्त्री का जिम पुरुष के माथ विवाह नहीं हुआ, वह पर पुरुष है । विवाह के पहिलं अगर कोई पुरुष, किमी कुमारी के साथ अनुचित सम्बन्ध कर, तो भी उसे व्यभिचार कहंगे: लेकिन विवाह होने के बाद वह सम्बन्ध व्यभिचार न कहलायंगा ! इस में यह बात साफ मालम होती है कि विवाह में ऐसी खूबी है जो व्यभिचार के दाप को अपहरण कर लेती है। जो आज परपुरुप है विवाद होने के बाद वह म्वपुरुप बन जाता है. जो श्राज परस्त्री है विवाह होजाने के बाद वह ही स्वस्त्री बन जाती है । जो विधवा आज परम्त्री है वह विवाह