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अनन्त मानता है, छठे काल में भी ये जातियाँ बनी रहती हैं तो यह मानना ही पड़ेगा कि विजातीय विवाह आदि से इन जातियों का नाश नहीं हो सकता। जब जाति का नाश करना असम्भव है तो उसकी रक्षा करने की चिन्ता मूर्खता है ।
प्रक्षेप (ङ) - अनुमानतः इन जातियों का नवीनत्व प्रसिद्ध है । ( विद्यानन्द )
समाधान - मांगभूमियों में जातिभेद नहीं था । ऋषदेव ने तीन जातियाँ बनाई । भरत ने चौथी । इससे इतना तो सिद्ध हो गया कि ये भरत के पीछे की है। इसके बाद किसी अन्य तीर्थंकरादि ने इनकी रचना की हो ऐसा उल्लेख कहीं नहीं है। हाँ, ऐतिहासिक प्रमाण इतना अवश्य मिलता हैं कि हुएनसंग के ज़माने में भारत में सिर्फ ३८ जातियाँ थीं और आज करीब ४ हज़ार हैं ।
इससे मालूम होता है कि पिछले डेढ़ दो हज़ार वर्षो में जातियों का ज्वार श्राता रहा है उसी में ये जातियाँ बनी हैं। अब तक जैनियों का सामाजिक बल रहा तब तक इन जातियाँ की सृष्टि करने की ज़रूरत हो ही नहीं सकती थी। बाद में इनकी सृष्टि हुई है ।
चौबीसवाँ प्रश्न |
इस प्रश्न में यह पूछा गया था कि विधवाविवाह से इनके कौन कौन अधिकार छिनते हैं । यह बात हमने अनेक प्रमाणों में सिद्ध की है कि इनके कोई अधिकार नहीं छिनते । परन्तु श्रीलाल ने तो बिलकुल पागलपन का परिचय दिया । यह बात उसके आक्षेपों से मालूम हो जायगी ।
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आक्षेप ( क ) - जो अधिकारी होकर अधिकार सम्बन्धी किया नहीं करता वह धिक्कारी बन जाता है ।