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( २०७) है । प्रश्न पाठक हो सोचें कि क्या वह बुड्डा सगाई वाला दूल्हा था ? श्रीलालजी धोना तो देते ही है परन्तु उसके भीतर कुछ मर्यादा रहे तो अच्छा है।
खैर, ये सब प्रमाला इतने ज्यादा ज़बर्दस्त हैं कि 'पती' रूप में किसी को सन्देह नहीं रह सकता। इसलिये पाराशर ने विधवाविवाह का विधान किया है, यह स्पष्ट है । इसके अतिरिक्त मनुस्मृति के प्रमाण दिय गये है। आवश्यकता होने पर और भी प्रमाण दिये जा सकते हैं। जैन विद्वान यह कह सकते हैं कि हम हिन्दू म्मृतियाँ नहीं मानते परन्तु उन्हें यह कमी भूलकर भी न कहना चाहिये कि उनमें विधवाविवाहका विधान नहीं है । हिन्द पुगण और हिन्दु स्मृतियाँ विधवा. विवाह की पूर्ण समर्थक है।
आक्षेप ( ग )नान्यम्मिन् विधवा नारी नियोक्तव्या द्विजातिभिः । अन्यस्मिन् हि निय जाना धर्म हन्युः सनातनः ॥ नांद्वाहिकप मन्त्रेष नियोगः कीर्त्यते क्वचित् । न विवाहविधायुक्त विधवावदनं पुनः ।। मनुस्मृतिक ये दोनों श्लोक विधवाविवाह विरुद्ध है।
(श्रीलाल) समाधान-हम कह चुके है परिस्थिति के अनुसार अनेक तरह की माझा एक ही स्मृतिमें पाई जाती हैं । इसलिये अगर एक पुस्तक में एक विषय में विधि निषेध है तो उसका समन्वय करने के लिये अपेक्षा ददना चाहिये । अन्यथा जिस मनुस्मृति में स्त्री पुनर्विवाह की मात्रा है और उसे संस्कार कहा है उसी में उसका विरोध केसा? स्वृतियों में समम्मय और मुख्यगौणताका बड़ा मूल्य है। खैर, परन्तु इन श्लोकों को तो श्रीलालजीने ठीक ठीक नहीं समझा है अन्यथा ये श्नांक