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( २१६ ) 'तावद्विवाहा नैवस्याद्यायवत्सप्तपदी भवेत्' तब तक विवाह नहीं होता जब तक सप्तपदो न हो जाय । इसलिये जिस स्त्री को विवाही गई कहा है वह अभी तक वाग्दत्ता ही बनी हुई है, ऐसी बात श्रीलाल जी ही कह सकते हैं। फिर पुनर्विवाह शब्द भी पड़ा हुआ है । यह पुनर्विवाह शब्द ही इतना स्पष्ट है कि विशेष कहने की ज़रूरत नहीं है। खैर, श्रीलाल जी इस वाक्य का जो चाहे अर्थ करें परन्तु उनने यह बात मानता है कि सोमदेव जी को इम वाक्य में कुछ आपत्ति नहीं है। अन्यथा उन्हें इस वाक्य के उद्धत करने की क्या ज़रूरत थी, जब कि खराडन नहीं करना था। वैष्णवों के प्रन्थों में पुनविवाह की कैसी आज्ञा है यह बात हम इसी लेख में विस्तार से सिद्ध कर चुके हैं।
प्रश्न अट्राईसवाँ इस प्रश्न में यह पूछा गया था कि अगर किसी अबोध कन्या के साथ कोई बलात्कार करे तो फिर उसका विवाह करना चाहिये या नहीं। हमने उत्तर में कहा था कि ऐसी हालत में कन्या निरपराध है। इसलिये विधवा-विवाह के विरोधी भी ऐसी कन्या का विवाह करने में सहमत होगे; क्योंकि उसका विवाह पुनर्विवाह नहीं है, आदि । श्रीलाल जी का कहना है कि 'उसी पुरुष के साथ उसका विवाह करना चाहिये या वह ब्रह्मचारिणो रहे, तीसरा मार्ग नहीं अँचता ।' जब तक मिध्यात्व का उदय है तब तक श्रीलालजी को कुछ जैच भी नहीं सकता। परन्तु श्रीलालजी, न अँचने का कारण कुछ भी नहीं बतला सके हैं इसलिये उनका यह बक्तव्य दुग. ग्रह के सिवाय और कुछ नहीं है।
प्राक्षेप ( क )-ऐसी कन्या का विवाह बलात्कार करने