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(११) का यह स्थल नहीं है । ऐसी अप्रस्तुत बानों को उठाकर भा. पक, अर्थान्तर नामक निग्रहस्थान में गिर गया है।
प्राक्षप (घ)-नोटिसबाजी करते करते किसका दम निकला जाता है । गर्मी की बीमारी मुम्बई में हो सकती है। यहाँ तो नवाबी ठाठ है । (विद्यानन्द )
समाधान-नोटिसबाज़ी का गर्मी की बीमारी से क्या सम्बन्ध ? और गर्मी की बीमारी के अभाव का नवाबीढाठ में क्या सम्बन्ध ? ये बीमारियां तो नवायी ठाठ वालों को ही हुमा करती हैं। हाँ, इस वक्तव्य में यह बात ज़रूर सिद्ध हो जाती है कि आक्षेपक, समाजसंवा की ओट में नवाबी ठाठ से खब मौज उड़ा रहा है मो जब तक समाज अन्धी और मुढ़ है तब तक कोई भी उसके माल से मौज उड़ा सकता है।
आक्षेप (ङ)-दुनियाँ दूसरों के दोष देखनी है परन्तु दिल खोजा जाय तो अपने से बुग कोई नहीं है।
(विद्यानन्द) ममाधान-क्या इस बात का खयाल आक्षेपक ने सुधारका का कोसते समय भी किया है ? मनियेषियों के विरुद्ध जो हमने लिखा है वह इसलिय नहीं कि हमें कुछ उन गरीब दीन जन्तुओं से द्वेष है। वे बेचारे ना भूख और मान काय के सताये हुए अपना पेट पाल रहे हैं और कषाय की पूर्ति कर रहे हैं। ऐसे निकृष्ट जीव दुनियाँ में अगणित हैं। हनाग ना उन सब से माध्यस्य भाव है। यहाँ जो इन ढोंगियों की ममालोचना की है वह सिर्फ इसलिये कि इन दागियों के पोछ सपा मुनिधर्म पदनाम न हो जाय । अनाधविद्या की बीमारी मे लोग यों ही मर रहे हैं। इस प्रपथ्य सेवन से उनकी बीमारी और न बढ़ जाय ।