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( १८७) नहीं समझते । ब्रह्मचर्य का अर्थ मजबूरी से मैथुन का अभाब नहीं है किन्तु प्रात्मा की ओर ऋजु होने को ब्रह्मचर्य कहते हैं। कोई कन्या मनमें किसी सुन्दर व्यक्ति का चितवन कर रही है। क्या आप उसे बह्मचारिणी समझते हैं ?
(विद्यानन्द | समाधान-कितनी अच्छी बात है ! मालूम होता है छिपी हुई सुधारकता प्रमावधानी से छलक पड़ी है। यही बात तो सुधारक कहते हैं कि विधवाओं के मैथुनाभाव को वे ब्रह्मचर्य नहीं मानते क्योंकि यह विधवाओं को मजबूरी सं करना पड़ता है और यह मजबूर्ग निरुपाय है । कमारियों के लिये यह बात नहीं है। उन्हें मजबूर्ग से ब्रह्मचर्य पालन नहीं करना पड़ता। फिर उनके लिये विवाह का मार्ग खुला हुआ है । विवाहमामग्री रहने पर भी अगर कोई कमागे विवाह नहीं करती ता उम्मका कारण ब्रह्मचर्य ही कहा जासकता है। विधवाओं को अगर विवाह का पूर्ण अधिकार हो मोर फिर भी अगर वे विवाह न करें तो उनका वैधव्य ब्रह्मचर्य कहलायगा ।
माक्षेप (च)-मबको एक घाट पानी पिलाना-एक डंडे से हाँकना नीतिविरुद्ध है।
समाधान-एक घाट से पानी पिलाया जाता है और एक रण्डे से बहुत से पशु हांक जाते हैं। जब एक घाट और एक डरे से काम चलाना है तब उसका विगंध करना फिजूल है। कुमार कुमारी और विधुगे को जिन परिस्थितियों के कारण विवाह करना पड़ता है व परिस्थितियाँ यदि विधवा के लिये भी मौजूद हैं तो वे भी विवाहघाट सं पानी पी सकती हैं।