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हो जायगा। न आयगा न हो जायगा। इसमें उस दम्पति को तथा सुधारको को कोमने की क्या ज़रूरत ? क्योंकि यह मब नो "शुभाशुभ कर्म ही करे है"। चाह रे ! 'करे हैं।
आक्षेप (2)-कर्म की विचित्रता ही ता वैराग्य का कारण है। उन चुवानों पर नरम आता है इसलिये हम उन्हें शान्ति से इम कर्मकृन विधिविडम्बना को महलने का उपदेश देते हैं।" ( विद्यानन्द)
समाधान-जी हाँ, और जब यह विधिविडम्बना उप. देशदाताओं के सिर पर आती है नत्र व स्वयं कामदेव के
आगे नंगे नाचते हैं, मरघट में ही नये विवाह की बातचीत करते हैं ! यह विधिविडम्बना मिर्फ स्त्रियों को सहना चाहिये। न मही जाय नो गुप्त पाप करके ऊपर से महने का ढोंग करना चाहिये । परन्तु पुरुषों को इसके महने की जरूरत नहीं । क्योंकि धर्म पुरुषों के लिये नहीं है । वे तो पाप मे भी मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं । अथवा यहाँ की आदत के अनुसार मुक्ति का झोटा पकड़ कर उसे वश में कर सकते हैं। उन्हें पाप पुण्य के विचार की ज़रूरत क्या है ? ।
वैराग्य के लिए कर्मविचित्रता की जरूरत है। इसलिये आवश्यक है कि मैकड़ों मनुष्य भूखों मारे जाँय, गरम कड़ाहों में पकाए जाँय, बीमाग की चिकित्सा बन्द कर दी जाय । इस से असुरकुमारों के प्रवनार पगिडनों को और पश्चों को वैराग्य पैदा होगा। अच्छा हो, ये लोग एक कमाईखाना खोल दे जिस में कमाई का काम ये स्वयं करें । जब इनकी छुरी खाकर बेचारे दीन पशु चिल्लायेंगे और तड़पेंगे, तब अवश्य ही उनके खून में से वैराग्य का सत्त्व खींचा जासकंगा। अगर किसी जगह विधवाओं की कमी हो तो पुरुषों की हत्या करके विधवाएँ पैदा की जाँय । क्योंकि उनके करुण क्रन्दन और