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होता है कि वहाँ के लोग तीव् मिथ्यात्वी, घोर अत्याचारी, महान् पक्षपाती और अत्यन्त मदांध हैं । इन दुर्गुणों का अनुकरण करके जैनियों को ऐसे मदांध पापी क्यों बनना चाहिये ?
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आक्षेप (ञ) - लॉर्ड घरानों में क़तई विधवाविवाह नहीं होता । विधवाविवाह से उच्च नीच का भेद न रहेगा । समाधान — लॉर्ड घराने का मतलब श्रीमन्त घराने से है । लॉर्ड कोई जाति नहीं है । साधारण आदमी भी श्रीमन्त और महर्द्धिक बनकर लॉर्ड बन सकते हैं । इन सब में विधवा विवाह होता है । हाँ. साधारण विधवाओं की अपेक्षा लॉर्ड घराने की विधवाएँ कुछ कम संख्या में विवाह करानी हैं । यह उच्चता नीचता का प्रश्न नहीं, किन्तु साम्पत्तिक प्रश्न है । लॉर्ड घराने की अपार सम्पत्ति छोड़कर विवाह कराना उन्हें उचित नहीं जँचता । जिन्हें जँचता है वे विवाह करा ही लेती हैं । दक्षिण के डेढ़ लाख जैनियों में, आर्यसमाजियों में, ब्रह्मसमा• जियों में, विधवाविवाह होता है परन्तु वे भंगी चमार नहीं कहलाते ।
आक्षेप ( ट ) - सूरजभान का जीवदया की पुकार मचाकर विधवाविवाह को कर्तव्य बनलाना अनुचित हे । जीवदया धर्म है, न कि शरीर दया । मन्दिर बनवाना धर्म है और प्याऊ लगवाने से अधर्म है। अगर कोई व्यभिचारिणी काममिक्षा माँगे तो वह नहीं दी जासकती। जो दया धर्मवृद्धि का कारण है, वही वास्तविक दया है । (श्रीलाल )
समाधान - बेचारा श्रक्षेपक दान के भेदों को भी न समझा । उसे जानना चाहिये कि श्रात्मगुणों की उन्नति को लक्ष्य में लेकर जो दान दिया जाता है वह पात्रदान है, न कि दयादान | दयादान तो शरीर को लक्ष्य में लेकर हो दिया