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ज़माने में जब विधवाविवाह की प्रथा न रही या कम हो गई तब इस प्रथा का उल्लेख भी न किया गया। यदि इसी तरह बहुपत्नीव की प्रथा नष्ट हो जाती तो श्राचार्य इस प्रथा का भी उल्लेख न करते । माध्यम जितना ऊँचा होजाय उतना ही अच्छा है । अगर परिस्थितियों ने स्त्रियों का ब्रह्मचर्यविषयक माध्यम पुरुषों से ऊँचा कर दिया था तो इससे स्त्रियों के अधिकार नहीं छिन जाते । कम से कम धर्म तो उनके अधि कारों में बाधा नहीं डालता । पुरुष समाज का माध्यम तां स्त्री समाज से नीचा है । इसलिये पुरुषों को तो स्त्रियों से कुछ कहने का अधिकार ही नहीं है । अब यहाँ एक प्रश्न यह खड़ा होता है कि विधवाविवाह का प्रचार करके स्त्रियों का वर्तमान माध्यम क्यों गिराया जाता है ? इसके कारण निम्नलिखित है ।
( १ ) यह माध्यम स्त्रियों के ऊपर ज़बरदस्ती लादा गया हैं, और लादने वाले पुरुष हैं जो कि इस दृष्टि से बहुत गिर हुए हैं। इसलिये यह त्याग का परिचायक नहीं किन्तु दासता का परिचायक है। इसलिये जब तक पुरुष समाज इस माध्यम पर चलने को तैयार नहीं है तब तक स्त्रियों से ज़बर्दस्ती इस माध्यम का पलवाना अन्याय है, और अन्याय का नाश करना धर्म है ।
( २ ) माध्यम वही रखना चाहिये जिसका पालन सहूलियत के साथ हो सके । प्रतिदिन होने वाली भ्रणहत्याएँ और प्रति समय होने वाले गुप्त व्यभिचार आदि से पता लगता है कि स्त्रियाँ इस माध्यम में नहीं रह सकतीं ।
( ३ ) श्रार्थिक कष्ट, घोर अपमान, तथा अन्य अनेक आपत्तियों से वैधव्य जीवन में धर्मध्यान के बदले श्रर्तध्यान की ही प्रचुरता है ।
(४) स्त्री और पुरुष के माध्यम में इतनी विषमता है