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है कि वह अभी तक यह नहीं समझ पाया है कि कामवासना की आंशिक निवत्तिका मतलब म्वदारसन्तोष गा म्वपतिसन्तोष है। जो लोग म्बदारसन्तोष को विवाह का मुख्य फल नहीं मानते वे जैनधर्म से बिलकुल अनभिज्ञ निरे बुद्ध हैं। बेचाग श्रीलाल, काम निवत्ति अर्थात् परदार निवृत्ति या परपुरुषनिवत्तिको धर्म, अोर म्बदारप्रवृत्तिका काम कहने में चकिन होता है । वाहरे श्रीलाल के पाण्डित्य ! गृहस्थाश्रम, धर्म अर्थ काम तीनों का साधक है, परन्तु उन तीना में भी परम्पर साध्य साधकता हो सकती है। जैसे- धर्म, अर्थ काम का माधक है; अर्थ, कामका साधक है आदि । बैग, हमाग कहना इतना ही है कि कुमारी विवाह के जो जो फल हैं वे मव विधवा विवाहस भी मिलते है। इसलिये विधवाविवाह भी विधेय है ।
आक्षेप (ङ)-जो पुरुष विषयों को न छोड़ सके वह गृहस्थधर्म धारण करे । यहाँ विषय शब्द से कंबल काम को ही सूझी! (श्रीलाल )
समाधान-विषय नो पाँची इन्द्रियों के होते है, परन्तु उन सब में यह प्रधान है। क्योंकि इसका जीतना सबसे अधिक कठिन है। जिसने काम को जीत लिया उसे अन्य विषयों को जीतने में कठिनाई नहीं पड़ती। इसलिये काम की मर्यादा करने वाला एक म्वतन्त्र अणुव्रत कहा गया है। अन्य भागांपनांग सामग्रियों के व्रत को तो गुणत्रत या शिक्षाक्त में डाल दिया है। उसका मातिचार पालन करते हुए भी ती रह सकता है, परन्तु ब्रह्मचर्याणुव्रत में अतिचार लगने से वन प्रतिमा नष्ट हो जाती है। क्या इससे सब विषयों में काम विषय की प्रधानता नहीं मालूम होती ? ग्रन्थकागे ने इस शाठ्यमाचरेत्" इस नीति के अनुसार ऐसा ही प्रयोग करना
-सव्यसाची।