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चाहिये। क्योंकि जब पाप है ना 'सर्व ही पापी हैं । व्यभिचार में नो श्राप सर्व ही पापी बतलावे और पन. विवाह में विधुरविवाह को धर्म बतलावे और विधवाविवाह का पाप, यह कहाँ का न्याय है?
आक्षेप ( ख )-चोर चोरी करता है । गवर्नमेन्ट दण्ड देती है इसमें गवर्नमेन्ट का क्या अपराध ? (श्रीलाल)
ममाधान-गवर्नमेन्ट ने अर्थोपार्जन का अधिकार नहीं छीना है। व्यापार से और नौकरी या भिक्षा से मनुष्य अपना पेट भर सकता है । गवर्नमेन्ट अगर अर्थोपार्जन के गस्ते गंकद तो अवश्य हो उस चोरी का पाप लगेगा । विधवाविवाह के विरोधी, विधवा को पति प्राप्त करने के मार्ग के विरोधी हैं, इसलिये उन्हें व्यभिचार या भ्रूणहत्या का पाप अवश्य लगता है। यदि स्थितिपालक लोग बतलायें कि अमुक उपाय से विधवा पति प्राप्त करले और वह उपाय सुसाध्य हो, फिर भी कोई व्यभिचार करे तो अवश्य स्थितिपालको को वह पाप न लगेगा। परन्तु जब ये लोग किसी भी तरह से पति प्राप्त नहीं करने देते तो इससे सिद्ध है कि ये लोग भ्रणहत्या और व्यभिचार के पोषक हैं। अगर कोई सरकार व्यापार न करने द. नौकरी न करने दे, भीख न माँगने दे और फिर कहे कि"तुम चोरी भी मन कगे, उपवास करके ही जीवन निकाल दो" तो प्रत्येक श्रादमी कहेगा कि यह सरकार बदमाश है, इसकी मन्शा चोरी कराने की है। ऐसी ही बदमाश सरकार के समान श्राजकत की पंचायते तथा स्थितिपालक लोग हैं । इसमें इतनी बात और विचारना चाहिये कि अगर कोई सर. कार चार्ग की अपेक्षा व्यापागदि करने में ज़्याद दण्ड दे तो उम्म सरकार की बदमाशी बिल्कुल नंगी हो जायगी। उसी प्रकार स्थितिपालको की चालाकी भी नंगी हो जाती है,