________________
( 1 ) कहेंगे कि जब तुमने रुपये का निषेध कर दिया तो चौदह पान की विधि क्यों करते हो ? क्योंकि चौदह प्राने ना रुपये के मोनर हो है। यह विगध नही. विगध प्रदर्शन को बोमागे है। एक के हान पर दो नहीं है' (कमत्त्वेऽपि द्वयं नास्ति) के समान दा न हाने पर एक का बात भी परम्पर विरुद्ध नहीं है। खेद है कि आक्षेप का इतना सा भी भाषाज्ञान नहीं है।
आक्षेप ( ज )-मछली की अपेक्षा बकग ग्राह्य हे या बकग की अपेक्षा मछली ? सिद्धान्न मे दानों ही नहीं।
(विद्यानन्द) समाधान-विधवाविवाह और भ्र गहत्या इन दानों में ममानता नहीं है किन्तु नर तमता है। भोर मी तरतमता है जैसी कि विधविवाह श्रार नरहत्या में है। इमलिये मछलो और बकरे का दृष्टान्त विषम है। जहाँ नग्नमना नहीं वहाँ चुनाव नहीं हो सकता । त्राहिमा और स्थावर हिसा. अणुः व्रत और महावन के ममान व्यभिचार और विश्वाविवाह में चुनाव हो सकता है जेमा कि विधुरविवाह और व्यभिचार में होता है।
प्राक्षप (झ)-चाणक्य ने कहा है कि गजा और पगिडत एक ही बार बालते है कन्या एक ही बार दी जानी हे । (विद्यानन्द ।
ममाधान-हमने विधवाविवाह को न्यायोचित कहा है। उमका विरोध करने के लिये ऊपर का नीनिवाश्य उद्धत किया गया है। प्राक्षेपक ने भूल से न्याय और नीति का एक हो अर्थ समझ लिया है। असल में नीति शब्द के, न्याय से अनिरिक्त तीन अर्थ है । (१) कानून, (२) चाल, ढग, पॉलिसी, (३) गैनि विगज । ये तीनों ही बाते न्याय के विरुद्ध भी हो सकती है। दक्षिण के एक गज्य में ऐसा कानून