________________
(४४)
जात है नब निवन्यात्मक भी होते है। उन में कुदेवपूजा तथा अन्य अशुभ परिगनियों में निवृत्ति पायी जाती है। इसी से वगी व्यवहार-धर्म कहे गये है।
इस विवेचन म पाठक समझ गये होंगे कि विधवाविवाह में कुमागविवाह के बराबर निवृत्ति का अंश पाया जाना है। इसलिये दोनों एक ही तरह के व्यवहार धर्म है ।
आक्षेप (ड)-यह लिग्वना महाझठ है कि विवाह के मामान्य लक्षण में कन्या शब्द का उल्लेख नहीं है। 'कन्या का ही विवाह होता हैं क्या इस दलील को झूठ बोलकर यों ही उड़ा देना चाहिये ?
समाधान-हमने कन्या शब्द को उड़ाया नहीं है, बल्कि हम शब्द के ऊपर ना हमने बहुत ज़ारदार विचार किया है। गजवानिक तथा अन्य ग्रंथोमें जो कन्या शब्दका प्रयोग किया गया है, उसके विषय में हम श्रीलाल जो के पापों के उत्तर देते समय लिख चुके हैं। इसके लिये आक्षेप नम्बर ' का समाधान पढ़ लेना चाहिये।
आक्षेप ( 8 )-श्राप त्रिवर्णाचार को अप्रमाण मानकर के भी उसी के प्रमाण देत है, लेकिन जिम्म त्रिवर्णाचार में टही पेशाब जाने की क्रिया पर भी कड़ी निगरानी रखी गई है. उसी में विधवाविवाह की मिद्धि कैम्म हो सकती है ?
समाधान-त्रिवर्णाचार को हम अप्रमाण मानते है, परन्तु विधवाविवाह के विरोधी तो प्रमाण मानते हैं. इसलिये उन्हें ममझाने के लिये उसका उल्लेख किया है। किसी ईमाई को समझाने के लिये बाइबिल का उपयोग करना, मुसलमान को समझाने के लिये कुगन का उपयोग करना, हिन्दू का समझाने के लिये वेद का उपयोग करना जिस प्रकार उचित है, उसी प्रकार स्थितिपालकों को समझाने के लिये त्रिवर्णाचार का