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( ५७ ) अधिकार दूसरे पुरुषों को भी प्राप्त है । लेकिन पुनर्विवाहिता के ऊपर दृमरे का बिलकुल अधिकार नहीं रहता। इसलिये वेश्यासेवन में तो अमन के साथ में भङ्ग है, लेकिन पुनर्विवाहिता में अभङ्ग ही अभङ्ग है । इसलिये वेश्या-सेवन अति. चार है और पुनर्विवाह न है । अनाचार दोनों ही नहीं हैं। सागारधर्मामृत का यह कथन विधवाविवाह का पूर्ण समर्थन करता है।
हम पाठकों से दृढ़ता के साथ कहते हैं कि अकेले सागार. धर्मामृत में ही क्या, किसी भी जैनग्रन्थ में-जो कि भगवान महावीर के परम पवित्र और उश्च सिद्धान्तों के अनुसार बना हो-विधवाविवाह का समर्थन ही मिलेगा। किन्तु उसे सम. झने के लिये विवेक और निःपक्षता की ज़रूरत है।
आक्षेप (घ)-चन्द्राभा अपने निंद्य कृत्य की जीवन भर निन्दा करती रही (विद्यानन्द ) । जब उस दुष्ट का साथ छूट गया तब श्रेष्ठमार्ग धारण करने से स्वर्ग गई । वह स्वेच्छा से व्यभिचार न करती थी, किन्तु उस पर मधु बलात्कार करता था । (श्रीलाल )
समाधान-मधु ने चन्द्राभा के साथ बलात्कार किया था या दोनों ही इससे प्रसन्न थे, यह बात प्रद्युम्नचरित के निम्नलिखित श्लोकों से मालूम हो जाती है :चाटुभिःसपरिहासबचोभितां तथा समनुनीय स रेमे । जातमम्य च यथा चरितार्थ यौवनं व मदना विभवश्च ॥७॥६६॥ लोचनान्तक निरीक्षणमन्तःकृजितं च हसितं च नदस्याः। चुम्बितं च वितुतञ्च ग्तश्च व्याजहार सुरतोत्सबगगम् ॥७७०॥ गीतनृत्यपरिहास्यकथाभिर्दीर्घिकाजलवनान्त विहारैः । तत्रतो रतिसुखाव मग्नी जशतर्न समय समतीतम् ॥१७॥
मधु ने चन्द्रामा को मीठी मीठी और हंसीली बातों