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आक्षेप ( च )-यदि विवाह शादी से सम्यक्त्व का कोई सम्बन्ध नहीं तो क्या पारसी, अंग्रेज़ लेडी, यवन कन्या आदि के साथ विवाह करने पर भी सम्यक्त्व का नाश नहीं होता? यदि नहीं होना तो शास्त्रों में विहित समदत्तिका क्या अर्थ होगा?
समाधान पारसी अङ्रेज़ आदि नो श्रार्य हैं: सम्यक्त्व का नाश ना म्लेच्छ महिलाओं के साथ शादी करने परभी नहीं होता । चक्रवर्ती की ३२ हजार म्लेच्छ पत्नियों के दृष्टान्त से यह बात बिलकुल स्पष्ट है । चकतर्नियों में शान्तिनाथ, कुन्थु नाथ, अरनाथ. इन तीन तीर्थङ्करों का भी समावेश है। अन्य अनेक जैनी गजात्रों ने भी म्लेच्छ और अनार्य स्त्रियों के साथ विवाह किया है। हां विवाह में इतनी बात का विचार यथासाध्य अवश्य करना चाहिये कि स्त्री जैन. धर्म पालने वाली हो अथवा जैनधर्म पालन करने लगे । इस से धर्मपालन में मुभीता होना है। इमीलिये समदत्ति में माधर्मी के साथ गटी बेटी व्यवहार का उपदेश दिया गया है । अगर कोई पारसी, अरेज़ या यवन महिला जैनधर्म धारण करले ना उसके साथ विवाह करने में कोई दोष नहीं हैं । पूराने जमाने में तो मी अजैन कन्याओके साथ भी शादी होनी थी. फिर जैनकी तो बात ही क्या है ? प्राचार शास्त्रों में लौकिक और पारलौकिक प्राचारों का विधान रहता है। उन का पालन करना सम्यग्दृष्टि की योग्यता और इच्छा पर निर्भर है। उन प्राचार नियमों के पालन करने से सम्यक्व श्राना नहीं है और पालन न करनेस जाता नहीं है । इस लिए श्राचार नियमी के अनुकूल या प्रतिकूल किसी भी महिलासे शादी करने से सम्यक्त्व का नाश नहीं होता।
आक्षेप (छ)-सगग सम्यक्त्व की अपेक्षा वीतराग सम्यक्त्व विशेष ग्राह्य है । फिर भी वीतराग सम्यक्त्वी में प्रशम